Ram Bhakti Geet || Ram Geet राम गीत | परम हंस मौर्य गीतकार

1.राम ही राम जपे जग सारा

राम ही राम जपे जग सारा।
राम बिना नहीं कोई हमारा।
राम कृपा हो जाए जिस पर,
हर पल मिलता उसे सहारा।
राम ही राम जपे जग सारा।

कोई न जाने राम की माया।
मैं दुखियारा शरण में आया।
जब से बना मैं राम भक्त,
कट गया जीवन का अंधियारा।
राम ही राम जपे जग सारा।

त्याग के सारे अवगुण अपने।
राम भक्ति में खुद को कसने।
लोभ मोह का छोड़ के बंधन,
है राम की ओर निहारा।
राम ही राम जपे जग सारा।

परम हंस मौर्य गीतकार शायर साहित्यकार

2. सबरी राम मिलन

सबरी राम मिलन
आज भाग्य के फूल खिलेंगे जरूर।
न हो उदास सबरी राम मिलेंगे जरूर।
जीवन के दुख सारे हो जायेंगे दूर।
न हो उदास सबरी राम मिलेंगे जरूर।

एक लालसा थी हमेशा हमारी।
राम चरण में बीते उम्र ये सारी।
सेवा से खुश हो कर मेरी मनसा करेंगे पूर।
न हो उदास सबरी राम मिलेंगे जरूर।

राम दरस बिन ये जीवन अभागा।
खो के सुध बुध मन राम में लागा।
दया दिखाएंगे दयानिधान,मन न होगा मजबूर।
न हो उदास सबरी राम मिलेंगे जरूर।

परम हंस मौर्य गीतकार शायर साहित्यकार

3. सीता हरण


सूनी सूनी कुटिया लागे कहां गई सीता माई।
व्याकुल होकर अनुज संग खोज रहे रघुराई।
ये पल है कितना दुखदाई।
ये पल है कितना दुखदाई।

मन की पीड़ा सही न जाये।
बात किसी से कहीं न जाये।
मंद मंद मुस्का के प्रभु सहते हैं तनहाई।
व्याकुल होकर अनुज संग खोज रहे रघुराई।

वैदेही का कोई पता बताये।
हाल चाल सब कुशल सुनाये।
करते हैं मन ही मन सब से यही दुहाई।
व्याकुल होकर अनुज संग खोज रहे रघुराई।

सिया की याद में नयन बिछाये।
वियोग विवश अब जिया न जाये।
रहती है साथ मेरे मन में है तस्वीर बसाई।
व्याकुल होकर अनुज संग खोज रहे रघुराई।

परम हंस मौर्य गीतकार शायर साहित्यकार

4.राम लखन सिया वन को चले हैं।

राम लखन सिया वन को चले हैं।
गांव नगर सब छोड़ चले हैं।
खुशियों के बस अरमान जले हैं
राम लखन सिया वन को चले हैं।

रहती थी जो राज महल में अब वन वन कष्ट उठा रही है।
सब दुख सहकर साथ पति के पति व्रत धर्म निभा रही है।
सौप के खुद को पति के चरणों में हस हस समय बिता रही है।
त्याग के सब कुछ महल अटारी बनो में महल बना रही है।
पिता वचन के लाज की खातिर राजा से सन्यासी बने हैं।
राम लखन सिया वन को चले हैं।

एक तरफ था राज धर्म एक तरफ थी मर्यादा
खुद टूट गए पर नहीं टूटने दिया पिता का इरादा।
त्याग दिया सुख वैभव सारा खुद को दुख ने बांधा।
रघुकुल के सम्मान के लिए सबसे किया है वादा।
पिता वचन के लाज की खातिर राजा से सन्यासी बने हैं ।
राम लखन सिया वन को चले हैं।

परम हंस मौर्य गीतकार शायर साहित्यकार

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