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आंसू भर रोए | विश्वास तेरी प्रीत का | प्रतिभा इन्दु

आंसू भर रोए
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जितना ही खो कर पाया है
उतना ही पाकर खो डाला !
दरवाजे पर हंस लेते हैं
आंगन में आंसू भर रोए !

आवाजें जो बंद कैद में
पुनः लौटकर आ जाती हैं ,
आंखों से निर्झर झरने सी
धारा बही चली जाती है ,

तिनके सी मैं पड़ी किनारे
चाह रही मझधार रोक लूँ ,
ऊपर- नीचे आते-जाते
कितनी बार नयन को धोए !
दरवाजे पर हंस लेते हैं
आंगन में आंसू भर रोए !

यह जीवन सुनसान अमावस
सा हर रात ठहर जाता है ,
आंखों में बेचैनी भरकर
इस दिल को उलझा जाता है ,

अंतर भी कुछ जान न पाया
रात – दिवस सब लगे बराबर ,
अब अंदर में ही घुट लेते
रहते हैं कुछ खोए खोए !
दरवाजे पर हंस लेते हैं
आंगन में आंसू भर रोए !

कितना ही कुछ खोने पर भी
जिज्ञासाएं बढ़ती जाती ,
देख- देख छवि दर्पण में मन
प्रतिमाएं नित गढ़ती जाती ,

चलते – चलते राहों में ही
धूल सने हर पांव दिखे जो ,
उग आई सुधियां जीवन की
पनपे बीज बिना ही बोये !
दरवाजे पर हंस लेते हैं
आंगन में आंसू भर रोए !

– प्रतिभा इन्दु

विश्वास तेरी प्रीत का

हार कर भी जीत लूं विश्वास तेरी प्रीत का ।
व्याप्त तू अंतस ह्रदय में भाव सुर संगीत सा ।

प्रेरणा जो थी तुम्हारी आज वह मुझको मिली
कल्पना को संग लेकर द्वार तेरे हूं खड़ी ,

पूर्ण तो होती नहीं हर कामना इंसान की
चाहतों में खो गई हैं ख्वाहिशें मुस्कान की।

आजकल भी लग रहा बीता हुआ अतीत सा,
स्वर्ण पट पर लिख दिया इतिहास तेरी जीत का।
व्याप्त तू अंतर ह्रदय में भाव सुर संगीत सा ।।

आप मेरे हैं सनम मनमीत बन रहना सदा
इस धरा से उस क्षितिज तक है नहीं तेरे सिवा ,

मिल गए हो आज फिर से अब नहीं होना जुदा
मैं वफा करती रहूंगी तुम भी सदा करना वफा ।

शब्द स्वर की साधना में रम गया मनमीत सा
दूं समर्पित कर तुझे क्रम जिंदगी की रीत का ।

व्याप्त तू अंतस हृदय में भाव सुर संगीत सा।।

ख्वाब नजरों में नजारे बन गए हो आज तुम
और बन अनगिनत सितारे झिलमिलाए आज तुम,

इंदु से पहचान पाकर शब्द मैं गढ़ती रहूंगी।
बैठकर सम्मुख तुम्हारे मैं सृजन करती रहूंगी ।

घुल रही संवेदना अब भाव बनकर गीत का ,
और दिल में है बसा एहसास मेरे मीत का ।

व्याप्त तू अंतस हृदय में भाव सुर संगीत सा।।

– प्रतिभा इन्दु

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