आशा शैली की ग़ज़ल | ग़ज़ल
आशा शैली की ग़ज़ल
ख्वाब में जो है मिला, सुब्ह बिखरने वाला
बाग उम्मीद का देखा न संवरने वाला
उसकी बातों का मैं किस तरह भरोसा कर लूँ
वो जो कर करके भी वादे है मुकरने वाला
आखिरी वक्त कुबूला है जो उसने इल्ज़ाम
झूठ बोलेगा भला क्यों कोई मरने वाला
आओ इक ओर लगाओ कोई नश्तर मितवा
तेरी यादों बड़ा घाव है भरने वाला
वादिए गुल की हवाओं को भी संग ले आता
हाय वो तेरी गली हो के गुजरने वाला
दो घड़ी सजदे में बैठे भी तो उस मालिक के
इस जहाँ फानी में दिन चार ठहरने वाला