aashaayen do na milan kee/डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज
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aashaayen do na milan kee :प्रस्तुत गीत आशायें दो न मिलन की डॉ. रसिक किशोर सिंह नीरज के काव्य संग्रह हम सबके हैं सभी हमारे से लिया गया है ।
आशायें दो न मिलन की
आशायें दो न मिलन की
मुझको वियोग सहने दो ।
एहसास मुझे करने दो
दुख दर्द पुराने अपने
स्मृतियों के सागर में
डूबने दो मधुर सपने
मेरे मानस में उमंग की
नौका अब बढ़ने दो ।
आशायें दो न मिलन की
मुझको वियोग सहने दो।।
इस भरे पूरे सावन में
दो बूँद वारि का प्यासा
चातक की तृषा अनोखी
होती कब उसे निराशा
कब तक वह मौन रहेगा,
उसको पी-पी कहने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
कुछ शब्द सुने थे हमने
अनुपम मधुरिम वाणी थी
भावों की मृदु सरगम में
तुम गीतों की रानी थी
सुधियों की इस मंजिल पर,
मुझकों कुछ तो रुकने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
संयोग क्षणों का अनुभव
हर समय नहीं होता है
मानव तो आदिकाल से
अविरल दुख ही ढ़ोता है
इस मिलन विरह सागर में ,
किंचित मुझको बहने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
इस क्षण भंगुर जीवन में
किसको मधुतृप्ति मिली है
हर घूँट तृषा बढ़ती है
किसको संतृप्ति मिली है
यदि जीवन नश्वर ही है
मन को आकुल रहने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
सुख बाँट दिया सब जग को
दुख ही मैंने अपनाया
सुख का अस्तित्व निमिष भर
दुख को ही शाश्वत पाया
सुख दुख की सीमाओं में
नव सुधर गढ़ने ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
मन दर्पण में प्रतिबिम्बित
होते हैं चित्र प्रणय के
अन्तस की इस कारा में
बंदी है चित्र समय के
इन चित्रों के रंगो में
मेरे मन को रंगने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
हम स्वप्न देखते निशि में
जो प्रातः में खो जाता
वह ममता की माया का
अभिसार छार हो जाता
‘नीरज’ यह स्वप्न चिरंतन
जागृत क्रम में रहने दो ।
आशायें दो न मिलन की ,
मुझको वियोग सहने दो।।
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