Hindi poem on childhood-बचपन/सीताराम चौहान पथिक

Hindi poem on childhood:  हिंदी  साहित्य  के वरिष्ठ  साहित्यकार  सीताराम  चौहान  पथिक  की  रचना  बचपन  पाठको  के  सामने  प्रस्तुत  हैं 

Hindi-poem-childhood



बचपन 


बच्चों में मैं बच्चा बन कर ,

बचपन को  दोहराता  हूं ।

खूब खेलता बच्चों के संग ,

मैं बच्चा  बन  जाता  हूं ।।

झूठ- मूठ के नाना व्यंजन ,

गुड़िया के संग खाता  हूं  ।

नन्हे  बर्तन  जब  बिखराती ,

क्रम  से  उन्हें सजाता   हूं ।।

गुड़िया घर  की  राजकुमारी,

हॄदयासन पर  शासन करती ।

उसकी  आज्ञा का उल्लंघन ,

डांट – डपटती, भाषण करती

गुड़िया की इक नन्ही गुड़िया,

झाड़- पोंछ कर उसे सजाती।

गुड्डे राजा  दूल्हा बन  जाते  ,

नन्ही गुड़िया दुल्हन बन जाती

ठुमुक ठुमुक कर राजा चलता

पीछे  नन्ही  गुड़िया  रानी  ।

इक दिन अपनी गुड़िया की ,

हा, बन  जाएगी यही कहानी

यही सोच भावुक हो जाता ,

जाने  कब बचपन खो जाता ।

गुड़िया आती – माटी खाती  ,

मुझे खिलाती, शिशु हो जाता

दोनों खूब चहकते दिन भर,

थोड़ी  माटी मैं  भी  खाता ।

अपने बीत  गए बचपन  को ,

गुड़िया में पाकर मैं मुस्काता ।

Hindi -poem- childhood
 सीताराम चौहान पथिक

 

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