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अब जाकर आराम मिला है / पुष्पा श्रीवास्तव शैली

अब जाकर आराम मिला है / पुष्पा श्रीवास्तव शैली

अब जाकर आराम मिला है।

बादल लिखना,काजल लिखना
कोई अर्थ कहाॅं होता है।
जब तक लिखा न जाए ऑंसू,
कोई मर्म कहाॅं होता है।
लिखा जो झोपड़ियों की टूटन,
तब जाकर आराम मिला है।

सावन का क्या ही मतलब है,
जब तक जेठ दोपहरी न हो।
और नहाई नीम न भाती,
जब तक धरा सुनहरी न हो।
लिखा जो माटी की दरकन को,
तब जाकर आराम मिला है।

घर में अम्मा की रोटी तो,
पत्थर से भारी लगती है।
और विदेशी कुत्तों की भी,
घर में ही थाली लगती है।
अंधेपन को लिख डाला तो
अब जाकर आराम मिला है।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली

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