अगले पल का ठिकाना नहीं है | अनीता सक्सेना


अगले पल का ठिकाना नहीं है। “

किरदार निभाने को मिला है इस जहाँ में ,
जब भी किसी से मिलें ,
प्रेम व ख़ुशी से मिलें
नश्वर है ये दुनिया, यहाँ
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

कोर्ट ,कचहरी, कार्यालय, अस्पताल
चहुँ ओर फैला, सोर्स, घूस का मकड़जाल
जब पाते हैं इसी कार्य के लिए वेतन
तो क्यों करते हैं अपना नैतिक पतन ?
ऊंचा पद, सद्कार्य का अवसर कब चला जाये ?
यह तुमने जाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

ईर्ष्या, द्वेष, नफरत से रहें दूर
सभी प्राणियों से प्रेम करें भरपूर
पर -पीड़ा को , स्व-पीड़ा समझे सभी
सब की सेवा के लिए हाथ बढ़ाएं अभी
इस जहां में किसी को सताना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

वृद्धाश्रम में वृद्ध माता-पिता रो रहे हैं।
धिक्कार है ऐसे बच्चों को जिनके,
स्वजन स्नेह से वंचित हो रहे हैं
बच्चों ! इनकी चंद साँसों के साथ
तुम्हारी खुशहाली का आशीर्वाद कब बंद हो जाये?
यह तुमने जाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है ।।

माता- पिता ने, हमको पढ़ना लिखना सिखाया
उन्होंने ही हमे पद-प्रतिष्ठा के काबिल बनाया
पूजनीय हैं हमारे माता-पिता,
इनको कभी भी भुलाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा,
तो मन की शांति के लिए है
सच्ची पूजा तो लाचार प्राणियों की ,
मदद ,कर्त्तव्य व भक्ति के लिए है
कर लो परोपकार व सबकी सेवा
मानव जीवन को संवेदना शून्य बनाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

ईश्वर ने जाति धर्म बनाया है,
यह शंका मन से हटा दे
जाति, धर्म का सब भेद – भाव
जन-जन के हृदय से मिटा दें
लड़ने, झगड़ने से क्या फायदा?
दुनिया के अमन चैन को घटाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है। ।

जो लोग जहाँ पर हैं,
सब अच्छा कार्य करें
किसी के आंसू का कारण न बनकर
खुशियों का विस्तार करें
बुराई के पथ पर चलने से,
कुछ हाथ आना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

हम सभी को इस बात का संकल्प लेना है
देश की प्रगति में अपना योगदान देना है
अनमोल है यह जीवन इसे व्यर्थ गंवाना नहीं है
अगले पल का ठिकाना नहीं है।।

स्वरचित कविता –
नाम : अनीता सक्सेना, अयोध्या , उत्तर प्रदेश

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