प्रेम प्रवास | बाबा कल्पनेश
प्रेम प्रवास
जिनको करना प्रेम प्रवास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
जहाँ निरंतर सुरसरि धार।
सुखद प्रकृति की छटा अपार।।
यह पावन तट है ऋषिकेश।
यहीं बुलावा है सविशेष।
जिनको आ जाए यह रास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
ध्रुव बालक को मिला प्रकाश।
भाव विखंडित हुआ निराश।।
जग का कोलाहल कर त्याग।
जागे जहाँ ईश अनुराग।
रहे भावना नहीं हतास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
जहाँ जगत का नित अवरोध।
जागृत हो अपनापन बोध।।
गंगाजल का नित कर पान।
होकर रहना सदा अमान।।
बनना जिनको हरिजन दास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
अति ऊँचा गिरिवर रमणीक।
नभ छूने का बना प्रतीक।।
कल्पनेश कर सुंदर गान।
अविरल गंगा बहे महान।।
जिसे बनाना जीवन खास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
दुर्लभ मानव योनि विशेष।
तब सहना क्यों उर-पुर क्लेश।।
जगत वस्तु है धूल समान।
अच्छा है सब कुछ कर दान।।
तज विकास अवरोधक घास।
आएँ मीत सभी जन पास।।
बाबा कल्पनेश
श्री गीता कुटीर-12, गंगालाइन,स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश,पिन-249304