गीत मेरे मन मीत सुनो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
गीत मेरे मन मीत सुनो | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
एक तुम्हीं जीवन आधार
तुमसे जीवन का ऋंगार।
पल-छिन नहीं विलग हो पाऊॅ-
अगणित प्रिय तुमको आभार।1।
प्रिय जीवन की प्रणय स्थली,
मधुर अधर मधु गीत हो तुम,
तुमसे ज्योतित जीवन-कानन,
दग्ध-हृदय संगीत हो तुम।2।
तपते मरुथल की वैतरनी,
मिलजुल पार हमें है करनी,
उर-अम्बर की तड़ित-रेख सी,
पावन क्षण की तुम आचमनी।3।
कितनी बातें मुझे बतानी,
मधुॠतु की तुम शाम सुहानी,
क्षिति-जल-अम्बर तुमसे रुचिकर,
इस जीवन की तुम्हीं कहानी।4।
युग-युग तक हो साथ हमारा,
कभी न छूटे हाथ हमारा,
दया,सत्य,ममता की देवी,
तुमसे यह घर-द्वार हमारा।5।
भूल-चूक सबसे हो जाती,
फिर भी हॅस कर प्यार लुटाती,
सुरभि सलोनी मलयज की बन,
कदम-कदम पर राह दिखाती।6।
जग की न्यारी रीति सुनो,
गीत मेरे मन मीत सुनो,
स्वर कोकिल ने तुमसे पाया,
रोम-रोम ने प्रीति सुनो।7।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ प्र) 229010