भला ऐसा प्रेम कौन करता है | कल्पना अवस्थी
भला ऐसा प्रेम कौन करता है | कल्पना अवस्थी
भला ऐसा प्रेम कौन करता है
जहां मिलन का कोई प्रश्न ही नहीं फिर भी मन उत्तर खोजा करता है
भला ऐसा प्रेम कौन करता है
जहां उम्र के बंधन भी टूट गए
हाथों में लिखते हुए हाथ बस छूट गए जहां कोई एक रोए तो दूसरा जार जार रोता है
कोई एक जागे तो दूजा कहां सोता है एक उदास हो तो दूसरे की मुस्कान छिन जाती है
एक देर से आए तो दूसरे की हर घड़ियां गिन जाती है
जब दूर बैठकर कोई निवाला खाता है उस हर टुकड़े में स्वाद एक दूसरे के हाथ का आता है
जब कोई एक बुखार से तप रहा होता है
तब दूसरा उसकी कुशलता के मंत्र जप रहा होता है
जब एक को याद तड़पा कर जाती है तब दूजे पर भी कहर बरपा कर जाती है
हाथों में हाथ कभी दे नहीं पाते
कंधे पर सिर रखकर कभी सो नहीं पाते
प्रेम की की लड़ाई भी अकेले ही लड़नी है
तब भी हमें प्यार की यह दास्तान दिन प्रतिदिन दुगनी करनी है
हर क्षण मन बस खोने से डरता है
भला ऐसा प्रेम कौन करता है
वक्त बीतता गया पर प्रेम गहरा हुआ हर बेबसी से लड़े हम ना उम्मीदों का पहरा हुआ
एक पल में हजारों हजार दुआएं निकलती गई
उम्र रेत के कणों से हाथ से फिसलती गई
एक होकर भी एक साथ खड़े क्यों नहीं कदम रुके क्यों है एक दूसरे की तरफ कभी बढ़ें क्यों नहीं
यह उम्र भले बीत जाए आखरी समय आ जाए
लरजते होठों पर नाम तुम्हारा हो और मौत आ जाए
झुर्रियां पड़े गालों पर एहसास तुम्हारा हो
कांपते पैरों को बस साथ तुम्हारा हो जब गर्दन लुढ़क कर निढाल हो संभाल लेना
हर दिवाली मेरा हिस्सा होली का गुलाल देना
यह प्रेम कितना प्यारा सच्चा व अनूठा है
यह किसी और युग का किस्सा शायद फूटा है
शब्दों का साथ ना हो तो प्रेम कैसे व्यक्त होगा
जीवनसाथी हो सब समझ लेना कुछ कहा कुछ अव्यक्त होगा
मौत सत्य है दर्पण पर ऐसे हर घड़ी कौन मरता है
भला ऐसा प्रेम कौन करता है
चुटकी भर सिंदूर नहीं उसमें संसार भर दिया है
जितने दुख पलकों में खुशियों का संसार कर दिया है
जाना मत कभी छोड़कर रहना पाऊंगी तुम्हारे वियोग हमें यह सब सह ना पाऊंगी
ऐसे उम्र भर के बंधन में भला कौन बंधता है
भला ऐसा प्रेम कौन करता है