Chaamar chhand saar saar shaarade – चामर छंद
Chaamar chhand saar saar shaarade
सार-सार शारदे
चामर छंद
विधान-
रगण जगण रगण जगण रगण
212 121 212 121 212
मातु शारदे सदा विराजती रहो हिए।
छंद शास्त्र ज्ञान दान चाहता रहो दिए।।
पाँव में रहे पड़ा लिखे सुगीत को जिए।
भक्ति भाव पूर्ण हो सुदिव्य भावना लिए।।
सार-सार शारदे निसार को निकाल दे।
भाव गंग धार सा प्रवाह दे सुचाल दे।।
हो प्रसन्न सर्वदा सुनीक हाल-चाल दे।
लाल हो निहाल ये सुकुंकुमादि भाल दे।।
भाव भंगिमा सुदिव्य काव्य में प्रसार दे।
छंद तारतम्यता पगे-पगे निखार दे।।
जो पढ़ें-सुनें उन्हें सुबुद्धि दे विचार दे।
मंगलामुखी बने रहें सभी निहार दे।।
भारतीयता जगे पगा सुराष्ट्रवाद हो।
हिंद सिंह सा जगे उठे सुशंखनाद हो।।
विश्व चाहता यहाँ नहीं कहीं विषाद हो।
मानवीयता जगे सुरीतता प्रमाद हो।।
वाग अर्थ जाग जाय मंगला हिए-हिए।
ये प्रकाश राष्ट्र हो प्रकाश को सदा जिए।।
अंध बंध टूट जांय हों दिये दिए-दिए।
राष्ट्र की ध्वजा सदा सुनेक हाथ हों लिए।
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