छप्पय छंद और गंगोदक सवैया/बाबा कल्पनेश

छप्पय छंद और गंगोदक सवैया

1 . छप्पय छंद


करना यदि सत्संग,चले देवरी तक आएं।
शिव का पावन धाम,करें दर्शन हरषाएं।।
संत रसमयानंद,किया करते शिव पूजन।
वेद मंत्र का गान,हिया कर देता पावन।।
पावनता उर में भरे,प्रवचन तुलसीदास है।
मंच जहाँ अनुपम सजा,जागृत नव उल्लास है।।

वेद मंत्र का गान,श्री रामेश्वर करते।
होते प्रातःकाल,मोद जीवन में भरते।।
उर में भर आनंद,जहाँ गीता का गायन।
कल्पनेश निज कर्ण,सभी सुनते रामायण।।
जग का रंजन त्याग कर,हरि रंजन उर में भरें।
संतों का संदेश यह,प्रेम वरण हम सब करें।।

आया उतर प्रयाग,जहाँ लघु रूप सँवारे।
श्री नारायण बोल,बोलते सब जन प्यारे।।
जप करते विद्वान,महामृत्युंजय सत् चित्।
हेतु सकल कल्याण,करें कामना परम हित।।
नित-प्रति होता इस तरह,याज्ञिक परम विधान है।
हरि-हर की सब पर कृपा,यह मंगलमय गान है।।


2 . गंगोदक सवैया

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संत    सम्मेलनों का यहाँ एक देखें मिली बानगी है अभी आप को।
राम  की हो कृपा आप आएं यहाँ शीश टेकें स्वयं त्याग दें दाप को।।
पुण्यता का वरें नित्य वाराणसी पुष्ट हो तुष्टि पा भक्ति के छाप को।
मुक्ति का भाव जागे मिले भक्ति भी दूर त्यागें रहें पाप के शाप को।।

ग्राम     आएं कभी आप भी देवरी दे वरः दें सभी को हरी बोल दें।
जो लगी गाँठ भारी हिए में रही संत व्याख्यान दे गाँठ को खोल दें।।
कल्पना को मिले पंख आराम हो कृष्ण की भावना भाव का घोल दें।
साधना लक्ष्य जो है मिला जीव को प्रेम पाएं यहाँ प्रेम का मोल दें।।

नित्य गाया करें राम के गीत को ज्ञान संसार का जो उसे मोड़ दें।
संत बानी यही नित्य जागें सभी आश संसार की जो उसे छोड़ दें।।
डोर जोड़े हरी भावना से रहें स्वार्थ की भावना जो उसे तोड़ दें।
एक है जो सभी में उसे ही भजें नित्य नाता रहे राम से जोड़ दें।।

बोल बानी सखे प्रेम पीयूष की जीव की साधना जो उसे ही करें।
वेद ने जो कहे आप ध्यायें वही ये गुरुर्वाक्य है साध लें तो तरें।।
कर्म जो भी करें कृष्ण के हेतु ही गीत गीता सदा ही हिए में धरें।
लेखनी चाहती चाह जागे यही आप संसार में नित्य फूलें-फरें।।

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बाबा कल्पनेश

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