बदलते चेहरे / आकांक्षा सिंह ‘अनुभा’

बदलते चेहरे

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।

आपके सामने कुछ और।।

दूसरों के सामने कुछ और होते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

सुनते तो थे कि लोग मतलबी होते हैं।

जानते भी थे कि लोग स्वार्थी हैं।।

लेकिन मौके पर अपनों को धोखा देते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है ।।

कल तक जो आपके अपने थे।

साथ आप के जो मिलजुल रहते थे।।

आपके जाते ही पीठ पीछे बातें करते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

रोज़ साथ जो बैठ कर गुफ्तगू करते हैं।

कुछ अपनी कहते हैं। कुछ उनकी सुनते हैं।।

उनको पल भर में बात पलटते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है ।।

कहते हैं, इंसान का जन्म क़ुदरत का तोहफ़ा है।

इंसान इंसानियत से भरा हुआ नायाब करिश्मा है।।

लेकिन मैंने इंसान को स्वार्थ में ढ़लते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

लोग अपनेपन का एहसास कराते हैं।

और बड़ी सफाई से अपना उल्लू सीधा करते हैं।।

काम निकलते ही चलते बनते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

जानते हुए भी कि ज़माना मतलबी है।

सोचा इंसानियत ही सब कुछ है।।

लेकिन मौके पर फितरत बदलते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

क्या पता था वो फिर कुछ ऐसा करेंगे।

साथ देने के समय विश्वासघात करेंगे।।

पलभर में विश्वास तोड़ते देखा है।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।

अक्सर चेहरों को रंग बदलते देखा है।।


आकांक्षा सिंह ‘अनुभा’

रायबरेली, उत्तरप्रदेश।।

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