मुसाफिर हम मुसाफिर तुम / नरेंद्र सिंह बघेल

मुसाफिर हम मुसाफिर तुम | नरेंद्र सिंह बघेल

मुसाफिर हम मुसाफिर तुम ,
किसी का क्या ठिकाना है ।
कि खाली हाँथ आए हैं ,
औ खाली हाँथ जाना है ।
फकत रह जाएगीं यादें ,
जो गुजरी संग अपनों की ।
किसी से कुछ नहीं लेना ,
किसी से कुछ न पाना है ।
भरम है अपनी नजरों का ,
कि दुनियाँ हम से चलती है ।
वही बस एक रहबर है ,
जिसे दुनियाँ चलाना है।

नरेंद्र सिंह बघेल

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