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पुष्पा श्रीवास्तव शैली की कविता | बौने स्वप्न | बुझता है दीप अंबे ज्ञान का प्रखर देखो

पुष्पा श्रीवास्तव शैली की कविता | बौने स्वप्न | बुझता है दीप अंबे ज्ञान का प्रखर देखो

बौने स्वप्न

हमने बोए कुछ स्वप्न,
कुछ उगे,बढ़े
और कुछ बौने रह गए।
बौने रह गए स्वप्नों को
दुलार लेती हूं।
कभी कभी वे ही
मेरे पांव में अपनी छोटी टहनियां
लपेट देते हैं।
उन्हें लगता है कि शायद
मैं उन कुपोषित स्वप्नों को
भूल गई।
वे मेरे स्वप्न में भी
अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

मुझे ज्ञात है मेरे स्वप्नों की
पौध क्यों बौनी रह गई।
कमजोर होने के कारण
लड़ नहीं पाए,
अपने हिस्से का पोषण
नहीं ले पाए।
मेरे स्वप्न ,
तुम्हारेबौने रह जाने से
मेरा मोह तुमसे अलग नहीं हुआ,
तुम मेरे बड़े हुए परिपक्व स्वप्नों
की तरह ही अति प्रिय हो।

तुम नहीं बढ़े तो क्या हुआ,
तुम खेलो अपनी नन्ही
किलकारियों के साथ मेरे
आंगन में।
मैंने आंगन का व्यास बड़ा कर
दिया।
मेरे स्वप्न।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली उत्तर प्रदेश।

2 .बुझता है दीप अंबे ज्ञान का प्रखर देखो

बुझता है दीप अंबे ज्ञान का प्रखर देखो,
अपनी विधा से माई दीप बाल दीजिए।
लेखनी में गति का उबाल भरो अंबिके,
रोशनाई अपनी कृपा की डाल दीजिए।
गीत,गीत प्रीति की ही बात कह कह जाए,
ऐसा ही भवानी भाव भर थाल दीजिए।
लिख दूं प्रहार तो बिंध अंग अंग जाए,
देश द्रोहियों के लिए शूल ढाल दीजिए।
मन ये जो तेरी ही गली से दूर जाए माई,
पकड़ के हांथ माई, सम्भाल दीजिए।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली

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