नवगीत | चरवाहों ने सारा जंगल बांट लिया

चरवाहों ने सारा जंगल बांट लिया

नहीं किसी को पता चल सका,

 सभी रहे अनजान ।

चरवाहों ने  सारा जंगल बांट लिया ।।

अपनी अपनी डफली पीटें गाएँ अपने राग।

कोई राग भैरवी गाए, तनिक नहीं अनुराग ।

अंधा बाप मांगता रोटी

 मची हुई है झोटा झोटी

 मेरा तेरा इसका -उसका शोर मचा

छीन झपट कर बिस्तर के संग खाट लिया।।

चरवाहों ने सारा जंगल बांट लिया।।

कल आया था मोटर वाला।

 कद का ठिगना रंग का काला।

साथ लिए था गोरीबाला,

 गले में उसके स्वर्णिम माला ,

टेप बजाया भाषण वाला,

 जैसे चीख रही हो खाला,

 हाथ जोड़कर उसके आगे।

 रहे देर तक खड़े अभागे ।

चमचों ने थूँका, फिर उसको चाट लिया।।

 चरवाहों ने सारा जंगल बांट लिया।।

कुछ कैमरे लिए कंधों पर

 डटे रहे अपने धंधों पर ,

लकदक वर्दी भटक रही थी ,

क्रुद्ध नदी के तट बंधों पर,

आगे -पीछे, पीछे -आगे ताकतवर गोले सब दागे

गर्दन हिली, टोपियां उछलीं।

स्वानों की मृदु बोली निकली।

सृजन नाम ले ,ताल तलैया पाट लिया।।

 चरवाहों ने सारा जंगल बांट लिया।।

charavaahon ne saara jangal baant liya
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी

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