Karwa Chauth Hindi kavita | चांद सा चांद देखा
चांद सा चांद देखा (Karwa Chauth Hindi kavita)
चलनी से जब चांद सा चांद देखा,
उतर आसमां भी करीब आ गया है।
तकरार कल भी हुई खूब जमकर,
मगर प्यार घिरकर अजीब आ गया है।
कल फिर से होगी लड़ाई हमारी,
कि सब्जी में मिर्ची तुम्हारी तरह है।
अरे दाल में छौंक शोंधी न लगती,
जली सी ये रोटी तुम्हारी तरह है।
मैं फिर से कह दूंगी बना लेना कल से,
हमें कोई देता किराया नहीं है।
दे देना पिछले महीने का वादा,
अभी मेरा कर्जा चुकाया नहीं है।
हंसकर के तुम फिर चले जाओगे प्रिय,
व्यथित मन तुम्हारे लिए हो रहेगा।
तभी फोन फिर बज उठेगा मचलकर,
चले आओ बस मन यही कह उठेगा।
तभी द्वार पर हो रही होगी खट खट,
गजरे में महका नसीब आ गया है।
तकरार होती रहे खूब जम कर,
मगर प्यार फिर से करीब आ गया है।
अन्य कविता पढ़े :