दौर | सम्पूर्णानंद मिश्र
दौर | सम्पूर्णानंद मिश्र
यह दौर
बिल्कुल अनिश्चितताओं का है
इस दौर में
सब कुछ अनिश्चित है
एक बुराई ही निश्चित है
जो सर्वव्यापी है
मृत्युलोक से ब्रह्मलोक तक
खूब फलीभूत हो रही हैं
बुराइयां
इसके कई पांव हैं
हर स्थान पर पहुंच जाती है
न केवल यह
सामाजिक रिश्तों की गठरी का बोझ उठाती है
बल्कि
श्मशानघाट की यात्रा तक
अपना वर्चस्व स्थापित की हुई है
अच्छाइयां तो
शब्द कोश के पन्ने में बेचारी डरी सहमी
कुछ स्थान घेरी हुई है
कभी भी निकाली जा सकती है
शब्द कोश के बाहर
क्योंकि
व्यावहारिक धरातल पर
जो लोगों के लिए
अनुप्रयुक्त हो जाता है
वह चलन से बाहर हो जाता है
खोटे सिक्के की तरह
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874