गणतंत्र पर बदलाव |कल्पना अवस्थी ‘दर्पण’
गणतंत्र पर बदलाव
सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो
सबल हो सब सुखी निर्बल के मुंह में कौर भी हो
दीपक की रोशनी से शहर सराबोर हो जाए
तिमिर दूर हो अज्ञानता का
ज्ञान के प्रभाव से चमकती भोर हो जाए
प्रतिपल बड़े द्वेष का अनुराग में बदलाव हो
सूखी धरा पर नित्य प्रति वर्षा का स्वर्णिम बहाव हो
कंपकंपाता ना देखे कोई भी भ्रष्टि आ पड़े
छांव का हो साधन सदा कोई ताप दृष्टि ना पड़े
निर्मित हो हर पग पर सदा की आराधक की आराधना
छोड़ कलुषित कर्म को हो बस साधकों की साधना
सशक्त रूप में रहे रूप में रहे और एक नया दौर भी हो
सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो
सब नीतियों में सैनिकों का सबसे अधिक सम्मान हो
जो देश हित में जी रहे सबसे विदित यह गान हो
उनकी चरण रज से हमारा हो रहा उद्धार है
संपूर्ण सृष्टि में हमें उनसे मिला अधिकार है
सच कहने की अभिव्यक्ति हो दोहरी प्रवृति का ना व्यक्ति हो
सब बालिकाएं हो सशक्त और देश के प्रति भक्ति हो
कोई भी वृद्ध आश्रम ना हो माता-पिता का साथ हो
संवेदना सब पर रखो बच्चा न कोई अनाथ हो
शिक्षा का पूंजीवाद भी तो खत्म होना चाहिए
जो जल रही है अग्नि सच की
झूठ भस्म होना चाहिए दर्पण कहे बदलाव हो
नित्य प्रगति का बहाव हो
बुराई को सब छोड़ दो मन को धर्म से जोड़ दो
हमारे किए कर्मों का कहीं एक ठऔर भी हो
सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो
कल्पना अवस्थी ‘दर्पण’
सबल हो सब सुखी निर्बल के मुंह में कौर भी हो
दीपक की रोशनी से शहर सराबोर हो जाए
तिमिर दूर हो अज्ञानता का
ज्ञान के प्रभाव से चमकती भोर हो जाए
प्रतिपल बड़े द्वेष का अनुराग में बदलाव हो
सूखी धरा पर नित्य प्रति वर्षा का स्वर्णिम बहाव हो
कंपकंपाता ना देखे कोई भी भ्रष्टि आ पड़े
छांव का हो साधन सदा कोई ताप दृष्टि ना पड़े
निर्मित हो हर पग पर सदा की आराधक की आराधना
छोड़ कलुषित कर्म को हो बस साधकों की साधना
सशक्त रूप में रहे रूप में रहे और एक नया दौर भी हो
सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो
सब नीतियों में सैनिकों का सबसे अधिक सम्मान हो
जो देश हित में जी रहे सबसे विदित यह गान हो
उनकी चरण रज से हमारा हो रहा उद्धार है
संपूर्ण सृष्टि में हमें उनसे मिला अधिकार है
सच कहने की अभिव्यक्ति हो दोहरी प्रवृति का ना व्यक्ति हो
सब बालिकाएं हो सशक्त और देश के प्रति भक्ति हो
कोई भी वृद्ध आश्रम ना हो माता-पिता का साथ हो
संवेदना सब पर रखो बच्चा न कोई अनाथ हो
शिक्षा का पूंजीवाद भी तो खत्म होना चाहिए
जो जल रही है अग्नि सच की
झूठ भस्म होना चाहिए दर्पण कहे बदलाव हो
नित्य प्रगति का बहाव हो
बुराई को सब छोड़ दो मन को धर्म से जोड़ दो
हमारे किए कर्मों का कहीं एक ठऔर भी हो
सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो
कल्पना अवस्थी ‘दर्पण’