Parivaar Aur Ghar | परिवार और घर | ज़िन्दगी का सच

Parivaar Aur Ghar | परिवार और घर | ज़िन्दगी का सच

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परिवार और घर

जीवन बड़ा है ,
दुखों का घड़ा है ,
ढालिए प्यार से ,
इसमें मोती जड़ा है ।

मस्त परिवार है ,
सुख का संसार  है ,
कर्ज़ मां- बाप का ,
फ़र्ज़ बन कर खड़ा है ।

उनको ठुकराओगे ,
और तड़पाओगे ,
दुआएं ले ना सके ,
वक्त – जालिम बड़ा है ।

ज़िन्दगी को सहेजो ,
मोतियों को सॅभालो ,
कद्र सबकी करो ,
वो रहम दिल बड़ा है ।

घर को मन्दिर बनाओ ,
सबको इसमें बिठाओ ,
फ़र्ज़ दिल से निभाओ ,
पथिक सबके दिल में ।
मेहरबां खड़ा है ।।


ज़िन्दगी का सच

ज़िन्दगी नटी है, सबको नचा रही है ,
सुख में भी और दुःख में, जलवे दिखा रही है ,
बिरले ही कुछ बचे हैं, फ़रिश्ते जहान में ,
पुतलियां है हम सब, नौटंकी करा रही है ।

दुनिया स्टेज है- हम किरदार कर रहे हैं ,
डोरी में हम बंधे  है, डोरी नचा रही है ।

नटी से बचना चाहो, नट – नागर से रिश्ता जोड़ों ,
उसकी दुआओं में ही, जन्नत समा रही है ।

कुछ इस तरह जियो तुम, हर जीव में तुम्ही हो ,
दुःख दूसरों के बांटो , गीता बता रही हैं ।

इंसानियत  के नाते , इंसान  बनना सीखो ,
यह ज़िन्दगी पथिक को , आइना दिखा रही है ।।

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सीताराम चौहान पथिक

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