Hasya vyang | पत्नी-चालीसा |पवन शर्मा परमार्थी
Hasya vyang | पत्नी-चालीसा |पवन शर्मा परमार्थी
पत्नी-चालीसा
हाथ जोड़कर कीजिये, पत्नी को प्रणाम,
पूजा उसकी कीजिये, भैया सुबहो-शाम।
अपनी प्रिया पत्नी के, बने रहिए गुलाम,
इसी तरह किया अगर तो, मिलें सभी आराम।।
जय तेरी पत्नी महारानी,
बड़ी चतुर चालाक सयानी।
पत्नी है जीवन कल्याणी,
उसकी कृपा न जाय बखानी।
जब से मेरे घर वो आई,
देखी उसकी हर चतुराई ।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव सभी हारे,
चण्डी रूप कभी जब धारे।
मर्जी रहे घर स्वर्ग बना दे,
ना चाहे तो नरक दिखा दे।
उसकी महिमा अपरम्पार,
जिससे सदा मेरा उद्धार।
वह मेरे बच्चों की माता,
वो ही मेरी भाग्य विधाता ।
साथ लिए हैं जब से फेरे,
पूजूँ उसको सांझ सवेरे।
जब से पड़े चरण आँगन में,
समय कटा सारा अनबन में।
मेरे घर की बनी मालकिन,
सब अधिकार गए मेरे छिन।
घर की है वो करता धरता,
मैं तो क्या हर प्राणी डरता।
प्यार करे तो लगती प्यारी,
लड़ती तभी, लगे झलकारी।
उससे कुछ कहूँ नहीं मजाल,
जीवन मेरा ऐसा मुहाल।
ब्याह न होता रहता अच्छा,
मैंने खाया कैसा गच्चा।
आजाद घूमते बन सुच्चे,
बीवी होती ना ही बच्चे।
न होता घर बार का लफड़ा,
खान-पान का ना हो झगड़ा।
एक बात तो उसमें सच्ची,
दिल की है वो काफी अच्छी।
कितनी बार क्रोध के कारण,
कर नहीं पाती धर्म निवारण।
हुक्म चलाने की है आदत,
भेजे सब कामों को लानत।
मैं पत्नी का श्रेष्ठ पुजारी,
सभी छोड़के दुनियादारी।
कुछ भी हो पत्नी तो पत्नी,
गैया हो फिर चाहे हथिनी।
जो किये फेरों पर वायदे,
पूरे करने के हैं इरादे।
जब भी वह क्रोधित हो जाती,
बेलन को हथियार बनाती।
पत्नी जी के हैं रुप अनेक,
सारे जगत में बस वो एक।
नाज़-नख़रे पत्नी उठाती,
मुझे काम में संग लगाती।
शायद उसका यही रंग है,
घर चलाने का इक ढंग है।
पत्नी मेरी घर संचालक,
मेरे बच्चों की है पालक।
मन आए तो सेवा करती,
न मरजी तो बहुत अकड़ती।
पत्नी मेरी मैं पत्नी का,
जीने का है यही सलीका।
पत्नी-सा ना कोई साथी,
वो मेरे दीपक की बाती।
नोंक-झोंक तो चलती रहती,
अनबन ठनठन भी है चलती।
जीवन को यदि सफल बनाना,
सीखिए पत्नी को मनाना।
पत्नी जी को कुछ ना कहना,
जो भी दे ताने सब सहना।
पत्नी संग प्यार से रहिये,
दोनों ही गाड़ी के पहिये।
इक भी हुआ अलग तो जानो,
जीवन चलना मुश्किल मानो।
इसलिए करें पत्नी पूजा,
इससे अच्छा न काम दूजा।
सुन लो सब ही लगाकर ध्यान,
सदा पत्नी को दें सम्मान।
प्यार करें पत्नी से पूरा,
मिलकर खाएं घी औ’ बूरा।
जीवन में सदा रहे मिठास,
पास रहे नहीं जरा खटास।
इस बात का बुरा ना मानो,
अपनी सभी कहानी जानो।
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कवि-लेखक
दिल्ली, भारत ।