मेरी मां एक नज़्म – सविता चड्ढा

मेरी मां एक नज़्म

meri-maa-ek-najm

 

मेरी माँ


मेरी मां के पास बहुत सीमित धन था
उसने मंदिर गुरुद्वारों में
कभी लंगर नहीं लगाया था
कोई बड़ा दान पुण्य का काम नहीं किया था
लेकिन उसके घर में जब भी कोई मेहमान आया
उसने हमेशा उसे पेट भर भोजन कराया
आने वाले अतिथि ने
मेरी मां से सदा ही बहुत सम्मान पाया
वह सदा प्रसन्न होकर गया,
यह संस्कार मुझे अपनी मां से मिला
मैंने भी इसे जीवन में अपनाया
घर आए मेहमान का सत्कार करना
उसका अभिवादन सम्मान करना
मुझे सब धर्मों से ऊपर लगा है
इसलिए मां की याद में…
आपसे मैंने यह सब कहा है।


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