heart touching poem on republic day in hindi
heart touching poem on republic day in hindi- इस गणतंत्र दिवस पर कल्पना अवस्थी की राष्ट्र को समर्पित रचना हम देश नहीं बंटने देंगे पाठकों के सामने प्रस्तुत है ।
हम देश नहीं बंटने देंगे
आज ये कैसा आवरण सा चारों ओर यू छाया है
देशद्रोहियों को अपनाना क्यूं सबके मन भाया है
वो जला रहे हैं अब पल-पल मच रही है दिल में इक हलचल
हिंदुत्व विरोधी तथ्यों का कैसा यह जाल बिछाया है
हम खड़े हिफाजत में अपनी अब कदम नहीं हटने देंगे
तू करे सियासत कितनी भी हम देश नहीं बंटने देंगे।
२
हम हिंदू हैं हम मुस्लिम हैं आपस में हमारा नाता है
पर हमें साथ में खड़ा देख यह दृश्य कहां अब भाता है
तू चल शतरंजो की चाले, हम चाल पे चाल चलाएंगे
तू गोला बनकर आएगा, शोलों सा तुझे जलाएंगे
हम हिंदुस्तान के वासी हैं तेरी औकात दिखाएंगे
तू चढ़ जाएगा पर्वत पर घुटनों पर तुझे चलाएंगे
दे दी है कितनी कुर्बानी हमने इस देश के खातिर ही
तेरे ही जज्बे हारे हैं तू बना हो कितना शातिर ही
इस देश की खातिर ही आजाद खुद गोली से मर जाता है
हंस हंस के देश की खातिर ही फांसी पर भगत चढ़ जाता है
बस देश के गौरव के खातिर लक्ष्मीबाई मिट जाती है
जब याद है आती कुर्बानी दुख से छाती फट जाती है
तू बना ले एटम बम पर बम भारत में ना फटने देंगे
तू करे सियासत कितनी भी हम देश नहीं बंटने देगे।
३
वह खड़ा है सैनिक सीमा पर हम सबकी जान बचाता है
वो देश के गौरव की खातिर ,तब लिपट तिरंगा आता है
वो खड़ा है अविचल सीमा पर जाड़ा गर्मी सह जाता है
बस इक हमारे हित खातिर सीने पर गोली खाता है
हम स्वार्थ भाव में लिपटे हैं उस त्याग को ही झुठलाते हैं
जो इक हमारी खातिर ही परिवार छोड़कर जाता है
हम नमन उन्हें हैं करते जो अपनी जान की बाजी हार गए
उस इक तिरंगे की खातिर अपना सब कुछ वो वार गए
तुम बैठ सियासत उन्मुखता के खेल रचाते रहना
राजनीति के नाम पर लोगों को लड़वाते रहना
उलझा देना इस देश को तुम सियासी हिस्सेदारी में
सब इसी तरह जड़ बैठे हैं स्वार्थ की बीमारी में
ईश्वर जाने ये राजनीति लोगों से क्या करवाएगी
जिनके जीवन में शांति भी हो उनको भी सड़क पर लाएगी
जो किसान देश का योद्धा है उसको भी सड़क पर ला बैठे
जिसका जीवन बस खेतों तक उसकी फसल जला बैठे
सुबह से उठकर सांझ ढले जब लौट के घर को आता है
तब सुकून भरी उस जीवन की बगिया को वो महकाता है
उसे कहां है फुर्सत है की वो बैठे सड़क को जाम करें
उसका जीवन बस इतना ही कि भारत हित में काम करें
तुम बंद करो अब बहुत हुआ ये राजनीति का दांव
क्या खुशहाल नहीं देखे जाते तुमसे भारत के गांव
यह प्रश्न नहीं उठ सकता कि किसान देश का अहित करें
विनती करती करबद्ध मैं हूं आतंक से देश को रहित करें
बेमतलब की भीड़ इकट्ठा कर किसान को बदनाम कराया है
ह बात बड़े ही शर्म की है वोटों का जाल बिछाया है
जब चारों ओर से हार गए तो दिखा यही इक रास्ता है
सब कुछ करके जब देख लिया किसान बचा फिर सस्ता है
इस देश का पूरक है किसान उसको तुम बीच में मत लाना
ये वक्त रहा है बदल बहुत पड़ जाए ना तुझको पछताना
हम अपने वीर किसानों को यूँ सड़क पे न दिखने देंगे
तुम करो सियासत कितनी भी हम देश नहीं बँटने देंगे।
४.
ना जाने कितने आतंकी इस देश के भीतर बैठे हैं
खा रहे हैं भीतर से हमको फिर भी घमंड में ऐठें हैं
देश विरोधी नारे लगाने वाला हीरो बन बैठा है
वो देश के भीतर का अफजल है फिर भी गुरुर में ऐंठा
भारत मां की जय बोलने मैं वो तो शर्मिंदा है
शर्मिंदगी तो इस बात की है बैठा अब तक वो जिंदा है
देश के वीर सैनिकों को देता वो गाली है
काट के टुकड़े फेंक दो उसकी कैसी नीति निराली है
जब बात क्रिकेट या फिल्मों की हम कितना कुछ कह लेते हैं
फिर देश के वीर सैनिकों पर इतना कुछ क्यों सह लेते हैं
वो एक कन्हैया कहता है घर घर से अफजल लाएंगे
तू वक्त तो आने दे तुझको तेरी औकात दिखाएंगे
हम ऐसे आतंकवादी को इस देश में रहने ना देंगे
हम हिंदू मुस्लिम दो खूनों की नदियां बहने ना देंगे
तू लगा ले जोर ऐ आतंकी तू दिखा ले कितनी भी युक्ति
हम फिर भी भारत माता का यह शीश नहीं झुकने देंगे
कहे कल्पना सुनो ऐ लोगों ऐसे लोगों की मत भोगो
कितना कुछ कह डाला है और कितना कुछ सहती है
अपनी अंतिम पंक्ति में कल्पना यही बस कहती है
हम जे.एन.यू में आस्तीन के सांप नहीं टिकने देंगे
तू करे सियासत कितनी भी हम देश नहीं बंटने देंगे
५.
जो देश की खातिर काम करे उस पर आरोप लगाते हो
सही पे सबकी चुप्पी है गलत पे मोदी ,योगी चिल्लाते हो
दुश्मन भी जिनका नाम सुन थर-थर कर थर्राता है
हम पर जब मुसीबत आ जाए हमसे पहले वो आता है
जिसने दुश्मन की छाती पर है बहुत करारा बार किया
जिसने दिन-रात की मेहनत से भारत को है गुलजार किया
हमें ऐसे वीर सिपाही को इस देश से हटने ना देंगे
तुम करो सियासत कितनी भी हम देश नहीं बंटने देंगे।
कल्पना अवस्थी
- हम देश नहीं बंटने देंगे कविता सुने कल्पना अवस्थी के साथ
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