hamaare jan pratinidhi/हमारे जन- प्रतिनिधि

हमारे जन – प्रतिनिधि ।

(hamaare jan pratinidhi)


कल के दुश्मन अब हमजोली
राजनीति की यही ठिठोली ।
हैं यह थर्म -नीति विध्वंसक ,
जनता नहीं रही अब भोली ।

कब दल से पलटी खा जाएं ,
सम्मान सहित दल में आ जाएं ।
नहीं भरोसे लायक फिर भी ,
कूट-नीति के बल पर छाए।

नित्य खिलाएं नये- नये गुल ,
सुन कर चुनाव का बजा बिगुल ।
नैतिकता खूंटी पर टांगी ,
विश्वास नहीं इन पर बिल्कुल

आरक्षण-सामाजिक न्याय और ,
अल्पसंख्यक की राजनीति ।
बेचारा बहुसंख्यक पिसता ,
निर्धन सवर्ण , कैसी अनीति

यह राजनीति के कुशल खिलाड़ी ,
घोषणाएं करते हितकारी ।
सच्चे जनसेवक जैसा भाषण,
विजय मिली-फिर स्वेच्छाचारी ।

जन-प्रतिनिधियों के संरक्षक ,
बहुधा टिकट उन्हीं को देते ।
भ्रष्टाचारी या अपराधी ,
चन्दा जो बढ़- चढ़ कर देते ।

जनता बहकावे में आकर ,
अपना प्रतिनिधि इन्हें बनाती।
पीते ही सत्ता की मदिरा ,
बन जाते यह जन प्रतिघाती ।

आधे कदम कब्र में लटके ,
फिर भी राजनीति में अटके ।
कुर्सी किसी तरह बच जाए ,
स्वार्थ- पूर्ति में खाते झटके ।

सम्मानित अति वॄद्ध जनों ,
राजनीति तज , भजन करो ।
सिंहासन छोड़ो तरुणो को ,
आत्म- शान्ति में रमन करो।

सोचो राजनीति के अग्रज ,
स्मरण करो उन बलिदानों को
तुम क्या थे ॽ क्या बन बैठे हो
मनन करो और पहचानो तो ।

छोड़ो राजनीति की दलदल ,
राजनीति को स्वच्छ बनाओ
राजनीति में – नीति छिपी है ,
गांधी सा जीवन अपनाओ ।

तुम से अब ये ना- मुमकिन है
नव – युवाओं को आगे लाओ
योग्य- प्रखर उज्ज्वल नवनेता
गणतंत्र पथिक इनसे चमकाओ ।।

hamaare- jan- pratinidhi

सीताराम चौहान पथिक

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