एक मुट्ठी राख -hindi poetry ek mutthee raakh
hindi poetry ek mutthee raakh
एक मुट्ठी राख
एक मुट्ठी राख में सब हुस्न उसका मिल गया , प्रेम की प्रतिमा थी वह , देखा कलेजा हिल गया , सौन्दर्य पर इतराने वालो, शक्ति का दम भरने वालों , देख लो अंजाम आखिर धूल बिस्तर मिल गया ।।
वो मेरी हमराज थी, जिन्दगी का साज थी , सरगम किसी ने तोड़ दी , मैं हाथ मलता रह गया।
मेरे अरमानो की महफ़िल या गुलाबी शाम थी , ऐसा लगा ग्रहण राहू चांदनी निगल गया ।।
जाने कैसे लोग थे वो , पा गए खुशियां हज़ार , हमनें जब फरियाद की , नजला हमीं पर गिर गया ।।
अब तो पथिक तौबाह की , मांगे दुआ किस के लिए ॽ अंजाम सब का एक है , माटी बिछौना सिलसिला ।।
सीता राम चौहान पथिक दिल्ली |