कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र

कलुआ की मौत / सम्पूर्णानंद मिश्र

आज सुबह-सुबह ‌
कलुवा कुत्ता
ठंड लगने से
मर गया
बहुत वफादार था
एक सशक्त पहरेदार था
मानवीय मूल्यों में ‌कत्तई‌
नहीं विश्वास था
आदमियों के चाल-चलन
को दूर से ही भांपता था
खाकी वर्दी वाले ‌आदमियों‌
से कांपता‌ था
श्वेत कपड़ों वाले जीवों
को देखकर ही हांफता था
खाकी व श्वेत वर्दी
वालों के नुकीले ‌दांतों
का‌ उसे बोध था
इसीलिए उनके पथ का
न ही वह अवरोध था
उसका यह प्रबल विश्वास था
इस बात का आस था
मेरा काटा हुआ बच सकता ‌है
लेकिन इन तथाकथितों‌ के ‌काटे
हुए से यमराज भी
नहीं ‌बचा सकता।
वफादारी की कीमत अदा
करता था
खाए हुए पत्तल में
कोई छेद नहीं करता था
इस मामले में उसने पुरुषों
को‌ कई ‌बार चित्त ‌किया था ‌
लेकिन बेशर्मी की चादर लपेटे
हुए आदमियों के
ऊपर इसका
कोई फ़र्क नहीं था
हर बार हारकर भी ‌
इन जानवरों ‌से आदमी ‌
कुछ ‌नहीं सीख पाया
और आदमी आदमी होकर
भी आदमी नहीं रह पाया

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

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