कविता पर एक कविता -डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र/kavita par ek kavita
कविता पर एक कविता
कविता जब से तुम
मेरे जीवन में आई हो
मुझे बहुत भाई हो
पूरी तरह से
मेरे ऊपर छाई हो
तुम्हारे रंग- रूप पर मैं मोहित हूं
काव्य-उदधि पार कराने हेतु
तुम हमारे लिए बोहित हो
तुम्हारे काव्य लावण्य के लिए बहुत
बेचैन रहता हूं
न रात में सो पाता हूं
न दिन में कोई काम कर पाता हूं
क्या सचमुच में
तुम्हारा मुझसे लगाव है
या यूं ही मेरा तुम्हारे
ऊपर झुकाव है
बात चाहे जो हो
कविता तुम चाहे जो हो
तुमसे मेरी पत्नी नाराज़ हैं
जबकि हमारे तुम्हारे रिश्ते में
ना राज है
ना साज है !
तुम मेरी
आत्मा में बसती हो
खिलकर हंसती हो
मुझे ही रचती हो
जब तुम ढल जाती हो
कल्पना के पंख लगाकर
उड़ जाती हो !
तो
तुम्हारे साथ
मुझे भी लोग
जान जाते हैं
मेरे स्वरूप को
पहचान जाते हैं
तुम्हारे इस रूप को
शत् शत् नमन!
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र