poem on Environmental awareness/ पर्यावरण -चेतना

 poem on Environmental awareness

  पर्यावरण
चेतना

poem- on- Environmental- awareness

 

गंगा पुकारती
रही ,

यमुना कराहती रही

दूषित ना तुम
करो हमें ,

मैया  पुकारती  रही 

 

हम कैसे  मातॄ
भक्त हैं ,

 अपवित्र  करते  ही  रहे

मां
क्षमा  करुणामयी   ,

 फिर  भी  दुलारती  रही

 

हम
पन्नियांकागज़ रसायन

   मल  बहाते  ही   रहे  

पावन  नदी
को  मलिन
कर ,

  दूषित  बनाते  ही   रहे  

 

 मोक्ष  की  परिकल्पना  में
,

विकॄत   किया  पर्यावरण 

बीमारियों  की   महफिलें  ,

घरघर  सजाते  ही  रहे 

 

हर तरफ  कचरा
ही  कचरा
,

 दूषित  किया  पर्यावरण 

गलीकूचेराजपथ   ,

 धुएं  में  डूबे  परिवहन   

 

अब
सांस  लेना  भी
कठिन ,

पवन
भी  विषैली
हो  गई 

कलकारखानों
वाहनों  ने
,

कर
दिया  है   आक्रमण 

 

अब ना  दिखते
हरित वन  ,

 चलती  वहां  कुल्हाड़ियां

जाएं  कहां
पशुपक्षी अब
,

 सूखी   दिखें   पहाड़ियों 

 

वनसम्पदा   श्री
हीन   ,

सूखा  है  कहीं
पर बाढ़ है

दूषित   हुआ  पर्यावरण  ,

 धुआं   उगलती  गाड़ियां 

 

नगरों  में  बढ़ता  शोरगुल  ,

जीना  हुआ  दुश्वार  है 

मस्तिष्क  के  रोगी   बढ़े  ,

सुनने  से  भी  लाचार  हैं 

 

सूरज  उगलता   आग   ,

तपती सड़क
सड़ती गंदगी  

दूषित हवा  बढ़ता  दमा  ,

रोगों  की  अब
भरमार  है 

 

जागो  नगर  के   वासियो
,

अपना नगर
निर्मल  करो 

स्वच्छता पर ध्यान
ध्वनि की ,

  तीव्रता   को   कम   करो 

 

घरघर  लगाओ  पेड़ ,

पाॅलीथीन  से
नफ़रत करो

कचरा  ना  फैलाओ  नगर

स्वच्छ और  निर्मल    करो 

 

चेतो  नगर   के  वासियो  ,

उगाओ  फूल  घर
घर  में

नगर
हो स्वच्छ निर्मल  ,

शुद्धि  अपनाओ
हर घर में 

 

उगाओ  पेड़
वनउपवन ,

बुझाओ  प्यास  खेतों  की 

पथिक  दो   त्याग
पाॅलीथीन

 थैला   लाओ  घरचर
में ।।

poem- on- Environmental-awareness
सीताराम चौहान पथिक

 

   

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