जब जागता श्री संत हो | मधुमालती छंद | बाबा कल्पनेश

जब जागता श्री संत हो

विषय-जब जागता श्री संत हो

छंद-मधुमालती

अब रात की वेला मुई।
यह प्रात की वेला हुई।
भरती महक है घ्राण में।
संचार शुभ है प्राण में।।

अब जागिए प्रिय प्राण जी।
तब क्लेश से हो त्राण जी।।
उस क्षण निशा का अंत हो।।
जब जागता श्री संत हो।।

यह हो गई जब आप की।
सहना तपन क्यों ताप की।।
वेला उषा की आ गई।
इस उर धरा पर छा गई।।

जब जागते हैं आप तो।
तब खींचते उर ताप को।।
जग नीर तो शीतल भले।
बिन आप के यह उर जले।।

जब जागते पिय आप हैं।
गलते तभी हिय ताप हैं।।
उर में भरी जो पीर हो।
पिय जागिए,आखीर हो।।

बाबा कल्पनेश

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