मैं राजनीति हूं | दया शंकर
मैं राजनीति हूं | दया शंकर
मैं राजनीति हूं,
राष्ट्र के निर्माण का इतिहास हूं,
जाने अंजाने मुझे,
विकास के हर सोपान पर,
देनी पड़ती है परीक्षा,
काश होती मेरी स्वस्थ समीक्षा,
लाचारी, बेकारी की भीड़ में,
मानव घिसता है पिटता है,
फिर भी सदन विकास का दंभ भरता है,
मैं राजनीति हूं,
कभी कभी मानव को,
घास के तिनके भर मिलता है,
उसे पर्वत सा समझता है,
सुना था कभी आएगी प्रलय,
सब नष्ट हो जाएगा,
लगता है उससे पहले ही,
सबका बेड़ा गर्ग हो जाएगा।
मैं राजनीति हूं।
दया शंकर
राष्ट्रपति पुरस्कृत, असिस्टेंट प्रोफेसर