मात शारदे इस बसंत में ऐसा वर दो / श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव
मात शारदे इस बसंत में ऐसा वर दो / श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव
मात शारदे इस बसंत में ऐसा वर दो,
कलुषित मन को मात मेरे तुम निर्मल कर दो।
फिर लिखवा दो गीत कि जिसमें लहरी गूंजे।
और क्षितिज पर भोर चांद की पलकें चूमें
लिखवा दो मां पीत पुष्प की अंगड़ाई का,
और बालियों में गेहूं की तरुनाई का।
सूखे जल के आश्रय में मां जल भर भर दो,
मात शारदे इस बसंत में ऐसा वर दो।
लिखवा दो मां पत्र एक बस महादेव को,
जीवन का सच्चा यथार्थ हमको समझा दें।
विश्वनाथ की गली घाट तारिणी मां गंगा,
के चरणों का दरश परश पावन करवा दें।
रमा विभूति अंग अंग मां विहबल कर दो,
इस बसंत में मात शारदे ऐसा वर दो।
या मां मन को चरण तुम्हारा ही बस भाये,
आनी जानी दुनियां है ये आए जाए।
लिखूं तुम्हारे गीत सदा, आरति मां गाऊं,
चरणों में मां शब्द पुष्प के हार चढ़ाऊं।
अंब विमल मति दे दो अब अंधियारा हर लो।
इस बसंत में मात शारदे ऐसा वर दो।