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शान्ति का मसीहा / सीताराम चौहान पथिक

शान्ति का मसीहा

बीत जाएंगे हजारों वर्ष- लेकिन,
याद हॄदय से भुलाई जाएगी ना ही कभी।
आएंगे स्मरण जब जीवन के अंतिम क्षण ,
आँसू बहाएंगे कोटि नर- नारी सभी।।

लेखनी लिखती रहेंगी तेरी अहिंसा की कहानी,
श्रंगित तुझे करती रहेगी कवियों की कविताएं ।
साबरमती के संत- – गरीबों के मसीहा ,
ध्वनि गूंजती रहेगी चारों तरफ दिशाएं ।।

शान्ति के दूत- – अहिंसा के पुजारी ,
संसार तुम्हें स्मरण करता ही रहेगा ।
छाएगी घनघोर घटा विश्व में जब-जब ,
यह विश्व अहिंसा का मार्ग स्वयं गहेगा ।।

सच्चाई के अवतार- नमन तुमको हमारा ,
हम भ्रष्ट- तंत्र पीड़ित तुमको पुकारते हैं ।
आओ यहां दोबारा अनुयायियों को देखो ,
शोषित पथिक हैं हम सब, तुमको निहारते हैं ।।

पथिक से ………

पथिक बढ़ा चल बढ़ता चला ,
हैं मंजिल तेरी बहुत दूर ।
मत घबरा कंकड़ – पत्थर से,
चुभते हैं तो चुभ जाने दे ।
यदि धूप चिलचिलाती सिर पर ,
सिर – पैर झुलस जाने दे ।
चाहे बाधा रही हों घूर ,
है मंजिल तेरी बहुत दूर।

यदि राह में पर्वत आते हैं ,
तू घबराना ना , हे राही ।
चाहे नभ स्वयं लजा जाए ,
महि धंसे रसातल में राही ।

तू थक कर मत हो जाना चूर ,
है मंजिल तेरी बहुत दूर ।।

सफल हैं जो राही, न रुकते कभी भी ,
अधूरी न मंजिल कभी छोड़ते हैं ।
हो चाहे प्रकॄति भी विपरीत उनके ,
न लक्ष्यों को राही कभी छोड़ते हैं ।।

हों बाधाएं कैसी भी क्रूराति क्रूर ।
है मंजिल तेरी बहुत दूर ।।

साहस से ले काम, तू हे मुसाफिर ,
ना घबरा विफलताओं के युद्ध- स्थल में ।
विफलताएं सह, तब मिलेगी सफलता ,
नये रंग बदलेंगे श्रम -बिन्दु कल में ।।

जल्दी ही मंजिल पर चमकेगा नूर ।
हिम्मत को अपने से रखना ना दूर ।।
है मंज़िल तेरी बहुत दूर ।

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सीताराम चौहान पथिक
नई दिल्ली 35

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