बहुत कुछ बिदा सा हो जाता माँ बाप का | श्रवण कुमार पाण्डेय पथिक

बहुत कुछ बिदा सा हो जाता माँ बाप का | श्रवण कुमार पाण्डेय पथिक

बहुत कुछ बिदा सा हो जाता माँ बाप का,
जिसदिन घर से ,बिदा हो जाती हैं बेटियां,

तरसते हैं कान कि ,कोई जरुरत आ पूंछे,
बाप के सब तरह से,नखरे उठाती बेटियां,

सारी चिंता ,सारी थकन सहज दूर होती,
जब हंसकर शर्बत ,पानी पिलाती बेटियां,

बाप का तन मन मानों सोने का हो जाता,
चुपचाप आकर ,गले लिपट जातीं बेटियां,

एक ही समाचार है माँ ,बाप की कुशलता,
रात दिन सोते ,जागते शुभ मनाती बेटियां,

कितनी भी थकन हो ,पलभर में ही गायब,
जब बाप के सिर उंगलियां फिरातीं बेटियां,

क्यों रो रहे हो,रात में एक शै ने जब पूँछा,
बाप ने कहा, बहुत ,याद आती हैं बेटियां,

श्रवण कुमार पाण्डेय पथिक

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