Moral story in hindi-मुआवज़ा/आरती जायसवाल

  Moral story in hindi

मुआवज़ा

राह में खड़ी गाय को हट -हट करते हुए दीनू काका अपना हाथ ठेला आगे बढ़ा रहे थे ।दूर-दूर से आकर प्रयाग में रहने वाले विद्यार्थियों का सर्वप्रिय पौष्टिक सुस्वादु अल्पाहार । अंकुरित चने और मूँग को चटपटा बना जब मूली और प्याज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों से सजाकर हरे पत्ते में पत्ते के ही कटे हुए टुकड़े को चम्मच के रूप में प्रयोग करने को देते तो बरबस ही लोगों का मन लालायित हो उठता और वे स्वयं को रोक न पाते ।

संध्या होते-होते उनका ठेले के सारे चने और मूँग बिक जाते थे और दीनू काका  अपनी पत्नी को समर्पित अपना पुराना गीत गुनगुनाते हुए—

चूड़िया की तोरी झंकार हो गोरी ईईईईईई,

मनवा में भर देती प्यार हो गोरी ईईईईई

 अपने झोपड़ेनुमा घर की ओर लौट आते ।आते ही गुहार लगाते  सुनती हो निमरिया की अम्मा पूरे एक सौ पचहत्तर रूपये आज दिन बढ़िया रहा तुम्हारा चन्दा सा चेहरा देख के निकला था घर से कहकर जब दीनू काका उसके हाथ में कुछ नोट और कुछ सिक्के धर देते तो वह नववधू की भाँति लज़ाकर धरती निहारने लगती ।जाओ जी आप भी न ,फिर ठिठोली करते हुए पूछती कौनो दूसरा चन्दा नहीं मिला का हो ? 

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दीनू काका भी छेड़ देते मिले तो बहुत राह में पर तुम्हरा बुढ़ापे में का होगा ये सोच कर नज़रभर  न देखा। हाँ-हाँ तुम कहो तो का हम मान लेंगे अरे हमसे पूरे छः साल बड़े हो और ई हिसाब से छः साल ज्यादा बूढ़े भी समझे की ना ।हाँ इतने सालों से समझ रहा हूँ अब भी न समझूँगा? नोक-झोंक ही दोनों बुजुर्ग दम्पत्तियों का एकलौता मनचाहा मनोरंजन था ।

एक ही पुत्री थी पार्वती  बचपन से ही दुबली-पतली इतनी कि आस-पड़ोस वालों ने उसका नाम ही निमरा रख दिया और असली नाम पार्वती लोग लगभग भूल गए ।पार्वती का ब्याह कर दीनू काका बेफ़िक्र हो अपनी पत्नी के साथ अपने बचे हुए जीवन का आनन्द ले रहे थे चने का ठेला उनकी रोजी-रोटी का एकमात्र सहारा ।

बेटी के ब्याह की जिम्मेदारी उठा चुके ठेले पर ही उनके उस झोपड़ेनुमा घर का भी भार था और देह ढँकने हेतु वस्त्रों व उदरपूर्ति का भी गाहे -बगाहे आने वाले अतिथियों का तथा खुद के व बेटी के तीज़-त्यौहार का भी और बुढ़ापे में पकड़ने वाली व्याधियों का भी भार उठाए वह ठेला पूर्णतया उनका जीवन सम्बल बन चुका थाा लो यहाँ से कहीं और लगाओ सारा अतिक्रमण हटाने का आदेश आया है ।

अरे भइया

यहाँ न लगाएँ तो कहाँ लगाने जाएँ का दो जून की रोटी कमाने का भी हक़ नहीं हमको?

हमको ज़िन्दगी भर अतिक्रमण ही कहा जाएगा का ?

अरे ऊपर से आदेश है दादा

हम इसमें कुछ नहीं कर सकते ।

कहकर पुलिस वाले चले गए पर दीनू काका क्या करें अपना ठेला लेकर कहाँ जाएँ ?

आज तो बेंच ही लूँ आख़िर इतना सारा अंकुरित चना, मूँग क्या करूँगा ?

साहब से आज की मोहलत माँग लूँगा।

दोपहर हो गई थी सूरज आग उगल रहा था

तभी उन्हें अतिक्रमण हटाने वाला दल बुलडोज़र लेकर आते हुए दिखाई दिया ।आस-पास के सभी गुमटियां तोड़ी जाने लगीं ।

मिठुआ का पानी-बताशे का ठेला उसे खरी-खोटी  सुनाते हुए उलट दिया गया।

 सब दीन- हीन बने अपनी- अपनी रोजी रोटी का एकमात्र  जरिए को उजड़ता देखते रहे ।

वह दल आक्रमणकारी की भाँति टूट पड़े थे।

दीनू काका भी बेचारे  हाथ मलते रह गए।

सारा सामान तितर बितर हो सड़क पर छिटक गया था

सभी सरकार को कोस रहे थे।

दीनू काका

 मन मसोस कर बोले –

साहब हमारे पेट पर लात मारने से सरकार को क्या मिल जाता है?

हमारे ऊपर जोर आज़माने से क्या होगा कितने ही धनैतों ने कितनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है ,उनसे तो एक इंच भी ज़मीन ख़ाली न करवा पाते हैं उलटे उनके चरण पूजे जाते हैं ।

एक ओर हम हैं कि सड़क किनारे ठेला खड़ा करने का भी अधिकार छीन लिया जाता है।

कोई रोज़गार नहीं मज़दूरी करने की शक्ति नहीं किसी तरह कमा-खा लेते थे ।

अब क्या करेंगे ?

कहाँ जाएँगे ?आस-पास के सभी गुमटियां तोड़ी जाने लगीं ।

मिठुआ का पानी-बताशे का ठेला उसे खरी-खोटी  सुनाते हुए उलट दिया गया।

 सब दीन- हीन बने अपनी- अपनी रोजी रोटी का एकमात्र  जरिए को उजड़ता देखते रहे ।

वह दल आक्रमणकारी की भाँति टूट पड़े थे।

दीनू काका भी बेचारे  हाथ मलते रह गए।

सारा सामान तितर बितर हो सड़क पर छिटक गया था

सभी सरकार को कोस रहे थे।

दीनू काका

 मन मसोस कर बोले –

साहब हमारे पेट पर लात मारने से सरकार को क्या मिल जाता है?

हमारे ऊपर जोर आज़माने से क्या होगा कितने ही धनैतों ने कितनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है ,उनसे तो एक इंच भी ज़मीन ख़ाली न करवा पाते हैं उलटे उनके चरण पूजे जाते हैं ।

एक ओर हम हैं कि सड़क किनारे ठेला खड़ा करने का भी अधिकार छीन लिया जाता है।

कोई रोज़गार नहीं मज़दूरी करने की शक्ति नहीं किसी तरह कमा-खा लेते थे ।

अब क्या करेंगे ?

कहाँ जाएँगे ?आस-पास के सभी गुमटियां तोड़ी जाने लगीं ।

मिठुआ का पानी-बताशे का ठेला उसे खरी-खोटी  सुनाते हुए उलट दिया गया।

 सब दीन- हीन बने अपनी- अपनी रोजी रोटी का एकमात्र  जरिए को उजड़ता देखते रहे ।

वह दल आक्रमणकारी की भाँति टूट पड़े थे।

दीनू काका भी बेचारे  हाथ मलते रह गए।

सारा सामान तितर बितर हो सड़क पर छिटक गया था

सभी सरकार को कोस रहे थे।

दीनू काका

 मन मसोस कर बोले –

साहब हमारे पेट पर लात मारने से सरकार को क्या मिल जाता है?

हमारे ऊपर जोर आज़माने से क्या होगा कितने ही धनैतों ने कितनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है ,उनसे तो एक इंच भी ज़मीन ख़ाली न करवा पाते हैं उलटे उनके चरण पूजे जाते हैं ।

एक ओर हम हैं कि सड़क किनारे ठेला खड़ा करने का भी अधिकार छीन लिया जाता है।

कोई रोज़गार नहीं मज़दूरी करने की शक्ति नहीं किसी तरह कमा-खा लेते थे ।

अब क्या करेंगे ?आस-पास के सभी गुमटियां तोड़ी जाने लगीं ।

मिठुआ का पानी-बताशे का ठेला उसे खरी-खोटी  सुनाते हुए उलट दिया गया।

 सब दीन- हीन बने अपनी- अपनी रोजी रोटी का एकमात्र  जरिए को उजड़ता देखते रहे ।

वह दल आक्रमणकारी की भाँति टूट पड़े थे।

दीनू काका भी बेचारे  हाथ मलते रह गए।

सारा सामान तितर बितर हो सड़क पर छिटक गया था

सभी सरकार को कोस रहे थे।

दीनू काका

 मन मसोस कर बोले –

साहब हमारे पेट पर लात मारने से सरकार को क्या मिल जाता है?

हमारे ऊपर जोर आज़माने से क्या होगा कितने ही धनैतों ने कितनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है ,उनसे तो एक इंच भी ज़मीन ख़ाली न करवा पाते हैं उलटे उनके चरण पूजे जाते हैं ।

एक ओर हम हैं कि सड़क किनारे ठेला खड़ा करने का भी अधिकार छीन लिया जाता है।

कोई रोज़गार नहीं मज़दूरी करने की शक्ति नहीं किसी तरह कमा-खा लेते थे ।

अब क्या करेंगे ?

कहाँ जाएँगे ?

कहाँ जाएँगे ?

आस-पास के सभी गुमटियां तोड़ी जाने लगीं ।

मिठुआ का पानी-बताशे का ठेला उसे खरी-खोटी  सुनाते हुए उलट दिया गया।

 सब दीन- हीन बने अपनी- अपनी रोजी रोटी का एकमात्र  जरिए को उजड़ता देखते रहे ।

वह दल आक्रमणकारी की भाँति टूट पड़े थे।

दीनू काका भी बेचारे  हाथ मलते रह गए।

सारा सामान तितर बितर हो सड़क पर छिटक गया था

सभी सरकार को कोस रहे थे।

दीनू काका

 मन मसोस कर बोले –

साहब हमारे पेट पर लात मारने से सरकार को क्या मिल जाता है?

हमारे ऊपर जोर आज़माने से क्या होगा कितने ही धनैतों ने कितनी ही ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है ,उनसे तो एक इंच भी ज़मीन ख़ाली न करवा पाते हैं उलटे उनके चरण पूजे जाते हैं ।

एक ओर हम हैं कि सड़क किनारे ठेला खड़ा करने का भी अधिकार छीन लिया जाता है।

कोई रोज़गार नहीं मज़दूरी करने की शक्ति नहीं किसी तरह कमा-खा लेते थे ।

अब क्या करेंगे ?

कहाँ जाएँगे ?

दीनू काका निराश हो घर की ओर लौट पड़े ।

घर पहुँच कर मरे स्वर में पुकारा-

निमरा की अम्मा !

अचानक अपने पति का करुण स्वर सुनकर वह चौंक गई ।

अरे!इस समय क्या हुआ और ये क्या ठेला कहाँ है ?

क्या बताऊँ ?

अतिक्रमण हटाने के नाम पर शहीद हो गया ।

जी ऊब गया इस झमेले से जब भी सोचता हूँ कि कुछ अच्छा होने वाला है तभी कोई पहाड़ टूट पड़ता है।

दुःखी होते हुए दीनू काका बोले।

आप तनिको चिन्ता न करो निमरा के बाबा !

उन्हें  हम गरीबों की हाय, लगेगी हाय!

मैं देखती हूँ दो-चार साहब लोगों के घर चौका-बरतन करके भी पेट पाल लेंगे ।

वह अपने पति को ढाढ़स बंधाते हुए बोली ।

दीनू काका का सिर झुक गया

बेज़ान स्वर में बोले इस उमर में तुम दूसरों के घर बरतन धुलोगी मैं यह सोचकर ही लज्जा से गड़ जाता हूँ।

मैं कभी इतना भी न कमा सका कि कुछ बचा सकूँ

और हमारा बुढ़ापा आराम से कट सके।

छोड़ो भी अब मैं अभी बूढ़ी न हुई हाँ तुम हो गए होगे कहकर वह उदास सी मुस्कुरा दी ।

प्यार से बोली –

चलो हाथ-मुँह धो लो

रोटी खाते हैं तुम्हारी पसन्द की लहसुन की चटनी बनाई है और आलू की रसदार सब्जी भी।

कई सप्ताह बीत गए दीनू काका बहुत प्रयत्न करने पर भी दूसरा ठेला न बनवा सके

निमरा की अम्मा ने कुछ घरों में काम शुरू कर दिया था ।

एक दिन संध्या के समय दीनू काका बाहर बैठे थे मिठुआ के घर से पर  रेडियो पर रेल दुर्घटना और नाव दुर्घटना में मृतकों के आश्रितों को दो-दो लाख रूपये मुआवज़ा देने की घोषणा  प्रसारित हो रही थी ।

तभी निमरा की अम्मा ने पुकारा –

आओ जी रोटी बन गई ।

रोटी खाते हुए वो बोले काश!

मैं भी किसी मुआवज़ा वाली दुर्घटना का शिकार हो जाता निमरा की अम्मा!

तो तुम्हारा बुढ़ापा भी चैन से कट जाता ।

अरे ये कैसी बातें कर रहे हैं आप ?

मेरा सुख चैन तो आप हो निमरा के बाबा!

दोबारा ऐसा सोचना भी मत ।

मैंने एक साहब से बोला है आपके लायक कोई काम बताने को तब मैं दूसरों के घर चौका-बरतन थोड़ी न करुँगी ।

मज़े से पलंग तोड़ूँगी और तुम पर हुक़्म चलाऊंगी ,

कहकर वह मुस्कुरा दी ।

दीनू काका ने पलंग की ओर देखा जो पहले ही झोल हो कर अधटूटी अवस्था में पड़ा था।

वे भी निमरा की अम्मा को देखकर मुस्कुरा दिए और नेत्रों में अश्रु की कुछ बूँदे छुपाए बाहर निकल गए।

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आरती जायसवाल

 

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