नव संवत्सर | हिंदी कविता | डाॅ. बी.के.वर्मा ‘शैदी’
नव संवत्सर | हिंदी कविता | डाॅ. बी.के.वर्मा ‘शैदी’
भारतीय नव संवत्सर के
स्वागत_समारोहों के बारे में जानकर,
मेरे पोते ने मुझ से पूछा:
“दादा जी!
New Year तो हम
तीन महीने पहले ही मना चुके हैं,
New Millennium के गीत भी गा चुके हैं,
फिर यह Action replay कैसा?
मैं बोला: “बेटा!
तुम्हारी नई सदी तो
अभी अभी पैदा हुई है, जब कि हमारी सदी अस्सी बरस की समझदार हो चुकी है। जब हमारी नई शताब्दी के दिन शुरू हुए थे, तब, तुम तो क्या तुम्हारे डैडी भी पैदा नहीं हुए थे। यह नया दिवस हमारी संस्कृति का स्तंभ होता है, हमारा नया वर्ष पॉप म्यूजिक से नहीं, देवी पूजा और राम के नाम से प्रारंभ होता है।
मित्रो!
आजकल पुराने मूल्यों को कौन पहचानता है?
जैसे आज का बच्चा
रानी के नाम से
झांसी की रानी को नहीं,
रानी मुखर्जी को जानता है।
लोग भी कैसे दीवाने हो रहे हैं?
घरों में
तुलसी के बजाय
कैक्टस बो रहे हैं।।
आज के नौजवान
विदेशी धुन गुनगुना रहे हैं,
वसंत पंचमी छोड़ कर
वैलेंटाइन_डे मना रहे हैं।
टीवी पर बढ़ते ही जा रहे हैं
हिंसा और सैक्स;
खाने की मेज पर हैं,
पौष्टिक नाश्ते की जगह,
चाउमीन, बर्गर, मोमोज और स्नैक्स।
जब से
Readymade cold drinks की बोतल आई,
लोग भूल ही गए, कि
कैसे घोटी जाती है
बादाम की ठंडाई।
हमारे यहां
एक और बड़ी खास बात है
कि
लगभग हर दिन
किसी न किसी नव वर्ष की शुरुआत है।
कोई नववर्ष शुरू होता है
दीपावली से,कोई जनवरी से, कोई चैत्र से तो कोई लोहड़ी से;
जब तुम्हें हो जाएगा
इन सब बातों का ज्ञान,
तभी होगा
अपनी संस्कृति पर अभिमान।
यह सुन कर
मेरा पोता तो चला गया,
लेकिन, मैं सोचने लगा कि
उसे दोष देने का
क्या है लाभ?
जब अवा का अवा ही है खराब।।
इसलिए, हे नव संवत्सर!
बस इतना कर दे,
दिलों में खुदी हुईं नफ़रत की खाइयां,
भर दे।
बच्चों के दिलों में
भड़क जाए ज्वाला
देशप्रेम की, संस्कारों की; हमारे पास पूँजी हो सद् विचारों की; हम साकार करें कल्पना जीवन के उल्लास की, व्यक्ति के, समाज के और भारत के विकास की; जनसेवा को ही मानें
प्रभु _सेवा का विकल्प,
यही हो हमारा
नववर्ष का संकल्प।
बस, यही हैं मेरी
नाज़ुक सी भावनाएं, और, इन्हीं के साथ, आप सभी को नववर्ष की
ढेरों शुभकामनाएं,
ढेरों शुभकामनाएं।।
(बी के वर्मा “शैदी”)