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विश्व कविता दिवस के शुभ अवसर पर कविता | प्रतिभा इन्दु

दे चुका सब कुछ तुम्हें मन अब न कुछ भी पास हैं.
जो खड़ा खण्डहर उसी का,यह सही इतिहास है।

मूर्तियां खण्डित हुई हैं
जो किसी ने तोड़ डाले
मूक बनकर कह रहे हैं
निज व्यथा सूने शिवाले

क्या पता तुमको चलेगा,यह मुझे अहसास है।
जो खड़ा खण्डहर………….

नित जला जाता कोई
हर रात को छोटा दिया,
रोशनी को देखकर अब तक
मन अंधेरों में जिया

और कल होगा वहीं पर यह अटल विश्वास है
जो खड़ा खंडहर ……. ‌

देखकर बहती नदी में
हाथ धोने चल पड़े ,
यह न जाना किस तरह से
घाट के पत्थर लड़े ।

क्या करोगे पूछ कर यह आपकी तो प्यास है ,
जो खड़ा खण्डहर… ‌…..

तुम जिसे सब व्यर्थ कहते
यह हवा का खेल है,
अंत जिसको कह रहे हो
वह सही का मेल है ।

देख कर खुशियां हमारी घुटन का क्यों आभास है ।
जो खड़ा खण्डहर …………

प्रतिभा इन्दु

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