श्रमिक दिवस पर कविता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश
श्रम- स्वेद-कण से वह नहाता।
सब धूप-छॉव भी सह जाता।।
निज की इच्छा नहीं बताता।
हॅस कर सबका भार उठाता।
धन्य मनुज मजदूर कहाता।
मस्त मुदित मन साथ निभाता।।
सदा सृजन रत उनको देखा।
लुप्त हाथ की सारी रेखा।।
दुर्गम- सुगम बनाने वाला,
श्रम का साथ निभाने वाला।
सड़क,भवन ,उद्यान बनाता।
स्वयं झोपड़ी में रह जाता।।
सुख का जीवन कभी न जीता।
दुर्दिन के हर ऑसू पीता।
महल,दुमहले वही बनाता।
सेवा देकर सुख पहुॅचाता।।
सब करते श्रम ,नहीं भुलाना।
सखा-बन्धु मत हॅसी उड़ाना।।
श्रमिक दिवस की उन्हें बधाई।
हर कोई है अपना भाई।।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश ,
रायबरेली (उप्र) 229010