पूछिये न कब ,कहॉ,मैं किधर गया / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
पूछिये न कब ,कहॉ,मैं किधर गया।
हादसों का दौर वह, जो गुजर गया,
नशा किसी के प्यार का,था उतर गया।1।
झूमते थे जो शजर ,बुलन्द ख्वाब में,
उखड़े जो जड़ से रुतबा ,भी उतर गया।2।
कहते रहे तुम्हें हम,चाहेंगे उम्र भर,
दो दिन था साथ हाथ जो,अब किधर गया।3।
किस तरह कहें उन्हें, कि दर्द देख लो,
ये दिल उसी के साथ था,जो बिखर गया।4।
उम्मीद के शहर में यूॅ,ठोकरें मिलीं,
पूछिये न कब ,कहॉ,मैं किधर गया।5।
अपना जमीर कैसे,नीलाम खुद करूॅ,
जी करके क्या करें,वह अगर गया।6।
क्या करे ये बागबॉ,तुफान देखिये,
मौसम हसीन था तो,सब सवॅर गया।7।
सोचा था सौंप दूॅ मैं,यह जिन्दगी उन्हें,
जिनके लिए मैं तन्हॉ, दर-ब-दर गया।8।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ प्र) 229010
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