साहित्यकार प्रतिभा पाण्डेय की कविता / प्रतिभा पाण्डेय
मुहब्बत कर ली
तन्हा जीवन,
ग़म की रातें,
मीठी- मीठी,
दूर कही थी बातें,
किसी पर विश्वास ना रहा
पर एक खोज,
चलता रहा————!!!!!!!??
फिर एक रोज एक फरिश्ता आया,
साथ में प्रेम की पूरी दुनिया लाया,
एहसास की मीठी डोर बंधी,
ख्वाहिश दिल में तन्हा जीवन,
गम की रातें,
मीठी- मीठी,
दूर कही थी बातें, की जगी,
खुबसूरत लगने लगा संसार,
आह!!!
अब ना रहा फिर जीवन में,
गम का बुखार,
जीवन में एक खुमार आया,
मेरे चेहरे पर अद्वितीय निखार आया,
ख्वाहिशों की महक ओढ़ ली मैने,
ना खत्म होने वाला,
मुहब्बत कर ली मैने|
– “प्रतिभा पाण्डेय” चेन्नई
इन्सानियत मर गई है
हाय रे इंसान तेरी इंसानियत मर गयी है,
जानवरों से भी बदतर तेरी छवि है,
जिस देवी ने जना तुझको,
उसपर अत्याचार कर रहा,
माँ बहनों के साथ,
व्यभिचार कर रहा,
कैसे दोगले लोग यहाँ,
फ़रेब का खेल, खेल रहे,
झूठे को सच मानकर,
दरिंदे अपनी तृष्णा पूरी कर रहे !
हे केशव कहाँ हो तुम,
यहाँ दौपदी का चीर हरण,
पल-पल हो रहा,
लगता है कि विधाता,
गहरी नींद सो रहा !
जिस माँ की छाती का दूध पीकर तू बड़ा हुआ,
उसी के प्रति इतनी घिनौनी हरक़त क्यूँ ????
मणिपुर की कृत्य से हर बच्ची महिला काँप गई,
हिन्दुस्तान की आत्मा क्या जातीय, मजहब में बँट गई????
कैसे सुरक्षित रहे हम ?
कौन हमारा कल्याण करेगा????
जब सत्ता प्रेमी, भ्रष्ट नेता
नोटों पर रोटी सेकेगा |
“प्रतिभा पाण्डेय” चेन्नई
हो जाए निश्चित बेड़ा पार
पीछे हट जा रे मन,
कलह अगर खत्म हो जाये,
जग सुन्दर मधुमास रहे,
घोर अंधेरा छॅट जाये!
तेरे पीछे हटने से,
अगर भला किसी का हो,
मुक्ति मिलेगी इस जीवन में,
भले न भाव मोल का हो!
तीलियों से सजी घर- गृहस्थी में,
जो आग लगी,
पीछे हट एक तीली,
सोचने लगी….,
पूरा घर जल जाएगा,
हाथ हमारे राख आयेगा,
मैं पीछे हट,
श्रृंखला को तोड़कर,
बचे हुए को,
आग से बचाऊॅगी,
जो जल गये गम उनका भी है,
पर,
जो बच गए उन पर,
सुकुन भरी आह भर पाऊॅगी ,
हितकर हो जाए ,
सारा संसार,
जब स्वार्थ का दामन छोड़कर ,
सबकी खुशी का उठाए भार,
हो जाए निश्चित बेड़ा पार|
“प्रतिभा पाण्डेय” चेन्नई