सखी नदिया की रेत तपे / आशा शैली
सखी नदिया की रेत तपे / आशा शैली
सखी नदिया की रेत तपे
प्रीत निगोड़ी सुनहु सखी,
मरने ना जीने दे
सखी नदिया की रेत तपे
जाने कब घन गगन घिरे
कब साजन घर लौटे
सूने गगन सरीखे मेरे
भाग हुए खोटे
सूनी आँख हमारी,
बिट-बिट सूना गगन तके
सखी नदिया की रेत तपे
जितनी बरखा बरसे,
बंजर क्यों उपजे तृन कोय?
प्रीत के रंग न उतरें
चाहे जुग-जुग मनवा धोय
मन मरुथल सूने का सूना,
बादल बरस थके
सखी नदिया की रेत तपे
सेमल के बिरवा के नीचे,
ढूँढें छाँव घनी
भरी दुपहरी में सोचें,
शीतल होगी रजनी
अपने धीरज की नदिया के,
बाँध न टूट सके
सखी नदिया की रेत तपे – आशा शैली