तेरा मेरा नाता | आशा शैली | हिंदी कविता
तेरा मेरा नाता
नदी नीर के नाते जैसा, तेरा मेरा नाता
तुझे पकड़ने दौडूँ मैं पर तू ओझल हो जाता
परछाईं सूरज से मिलकर जैसे सब को छलती
तेरी मेरी लुकाछिपी भी नित ऐसे ही चलती
कैसी प्यास जगाई तूने, कैसी प्यास जगाता
तुझ बिन मेरे प्रियतम मेरे नयना छमछम रोते
अब जाना मैंने बिरहा के निसदिन कैसे होते
बेकल मन मेरा है, तुझ बिन चैन कहीं ना पाता
बिना नीर असितत्व नदी का, ओ छलिया क्या होगा
बार-बार सपनो में आकर दे जाते हो धोखा
पल दो पल के लिए मिले यदि तो तेरा क्या जाता
नदी नीर के नाते जैसा तेरा मेरा नाता
२. हवाओं को कोई बांध के रखता कैसे
उन हवाओं को कोई बांध के रखता कैसे
ख़्वाब तो ख़्वाब था फिर मुझसे निभाता कैसे
उसकी चौखट पे कहाँ अपनी रसाई होती
मेरी ज़िद उससे निभायेगी ये रिश्ता कैसे
मैं कहाँ अपनी कहानी ही सुनाती उसको
पार करती मैं भला दर्द का दरया कैसे
टूटकर चाह लिया तुझ को जो मैंने वर्ना
ये मुकम्मल ही हुआ इश्क का किस्सा कैसे
हाय इक ख़्वाब सुनहरा था जो कल तक मेरा
कुछ ख़बर भी तो नहीं मुझको वो टूटा कैसे
आशा शैली
सम्पादक शैलसूत्र