उबाल | पुष्पा श्रीवास्तव “शैली” रायबरेली

उबाल
आजादी के गीत के दो दिन पहले
और बाद में ही
देश भक्ति का उबाल रहता है।
बाकी पूरे वर्ष स्वार्थ की धारा
प्रवाह मान रहती है।
कुछ नहीं होता वर्ष भर में
गीतों के माध्यम से जय हिन्द
बोल देने से।
कभी देखा उस कटे हाथ रिक्शा
चलाने वाले को?
पुल के नीचे अंधेरे में
बटोली में कुछ धुएं के साथ
पकाते हुए और खांसते हुए?
आजादी उसके फटे अंगौछे
से बहते हुए आंखो के पानी को
पो छते नजर आती है।
तुम जय हिन्द बोल कर
उसके पसीने के दाम भी
नहीं दे पाते।
मैंने आज ही देखा
कमसिन उंगलिओं को
सड़क किनारे बुलडोजर
से तोड़े गए पत्थरों को
भरते हुए।
अंतर तो है,
निराला की तोड़ती पत्थर
अब तोड़ती नहीं।
केवल भरती है।
और एफएम में बज रहा
मेरे देश की धरती
सोना उगले ।।

पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली

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