आजादी का पर्व सुपावन,आओ साथ मनायें | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

पन्द्रह अगस्त के पावन अवसर पर सादर समर्पित।

आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।

आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।
नील गगन में धवल तिरंगा,
फहर-फहर फहरायें।टेक।

मातृ भूमि की बलि वेदी पर,
हॅस कर शीश चढ़ाना,
सत्य-न्याय के पथ पर चलकर,
जग को राह दिखाना।
भूल-भटक न होने पाये,
संस्कार अपनायें।
आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।1।

तप,त्याग,तपस्या की धरती,
गाथा पौरुष की कहती,
वीर शिवा,आजाद,भगत सिंह,
गोविन्द की पीड़ा सहती।
लक्ष्मी बाई,वीरा पासी,
मंगल के गुण गायें।
आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।2।

जाति-धर्म में बॉट रही अब,
राजनीति अलबेली,
भूल न जाना इस मिट्टी ने,
रक्तिम होली खेली।
गद्दार तुम्हारे बीच छिपे,
किस-किसको समझायें।
आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।3।

जल,थल,नभ का भेद समझ कर,
दुनियॉ को बतलाया,
शस्य-श्यामला के ऑचल में,
समता दीप जलाया।
कोटि-कोटि कण्ठों में मिलजुल,
चन्दन-वात सजायें।
आजादी का पर्व सुपावन,
आओ साथ मनायें।4।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उप्र) 229010

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