वह मात्र एक छलावा है | सम्पूर्णानंद मिश्र
वह मात्र एक छलावा है
वैसे तो
सुख की कोई
परिभाषा निश्चित नहीं है
लेकिन
अच्छी अनुभूति सुख का आधार है
और बुरी दु:ख का
महात्मा बुद्ध ने कहा
जीवन में दुःख ही दु:ख है
और सुख तो हवा की तरह है
जिसका न रंग है न रूप है
और न ही कोई
निश्चित ठोस आकार है
सुख एक छल है
बहुरूपिया है
जिसकी प्राप्ति में संसार पागल है
पाना चाहता है
इस सुख को मनुष्य हर हाल में
लेकिन जिन
सांसारिक आंखों से
हम सुख के दर्शन के लिए
नाना प्रकार के छल कपट
और षड्यंत्र का चक्रव्यूह रचते हैं
उसमें हम लोग एक न एक दिन फंस जाते हैं
और वहां जिस दुःख की अनुभूति होती है
वह हमें तोड़ती है
कई हिस्सों में
इसलिए हो जाना चाहिए
सावधान और सतर्क
समय रहते
मरने के बाद
हमारा एकमात्र कर्म ही साथ जाएगा
किसी अन्य को
आपके साथ
जाने का अधिकार नहीं है
आपको ही अपने कर्मों
का हिसाब देना होगा
ईश्वर की अदालत में
महात्मा बुद्ध ने
इस सत्य को महसूसा था
और प्राप्ति की आत्मज्ञान की
निरंतर साधना से
और घोषित कर दिया
जीवन में दु:ख ही दु:ख है
सुख मृगतृष्णा है
वह मात्र एक छलावा है!
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874