ये जुल्फ बड़े कातिल,सॅवारा जो आपने | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

ये जुल्फ बड़े कातिल,सॅवारा जो आपने | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

चाह कर भी तुमसे,रुसवा न मैं हुआ,
इकबार नजर भर कर,निहारा जो आपने।1।

कोई गिला शिकायत,तुमसे नहीं रही,
अपना समझ के प्यार से,पुकारा जो आपने।2।

होंठों की सुर्खियों ने,ढ़ा दिया गजब,
ये जुल्फ बड़े कातिल,सॅवारा जो आपने।3।

हालात से वाकिफ,अफसोस बस यही,
थे दिन गर्दिशी के,गुजारा जो आपने।4।

ख्वाबों ने इस कदर,उड़ाया था फलक में,
हकीकत की जमीन पर,उतारा जो आपने5।

मिल गयी नसीहत,मेरी जिन्दगी को फिर,
दी थी मुझे हिदायत,दुबारा जो आपने।6।

मैं तो भटक गया था,अंधेरों की छॉव में,
किस्मत को दोष देते,सुधारा जो आपने।7।

रचना मौलिक,अप्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693

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