Anang Pal Singh Anang ki kavita /मैं अपनी गागर का पानी

Anang Pal Singh Anang ki kavita: हिंदी रचनाकार पर हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार अनंग पाल सिंह ‘अनंग’ ग्वालियर मध्यप्रदेश से अपनी रचना मैं अपनी गागर का पानी हिंदुस्तान की जनता के लिए प्रस्तुत कर रहे है ।  हमे आशा है कि इस रचना को पढ़ने के बाद आपकी सोच में जरूर बदलाव आएगा प्रस्तुत है रचना –

मैं अपनी गागर का पानी ।

बांधे पांव मोह ने मेरे,

माया ने हथकड़ी लगाई ।
एक बूंद पानी की मेरी,

गागर से ना बाहर आई ।।
मोह नहीं छूटा गागर से,

अपनी दुनियां गागर जानी ।

 

मैं अपनी गागर का पानी ।।

सोचा शमशीरों पर चढ़कर,

मैं वीरों की शान बढ़ाएं ।
बनूं पसीना मेहनत कश का,

बेशक मैं खारा हो जाऊं ।।
पर मैं ढक्कन खोल न पाया,

अंदर सड़ती रही जवानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

 

सोचा उतर सीप के अंदर,

मोती का पानी बन जाऊं ।
जाऊं उतर आंख में सबके,

लज्जा के दो दीप जलाऊं ।।
पर मैं निकल न पाया बाहर,

मेरे मन ने बात न मानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

 

मैं भी प्यास बुझा सकता था,

कभी किसी के अंतरमन की ।
कोशिश की पर खोल न पाया,

मैं कुण्डी अपने ढक्कन की ।।
रहा देखता मैं प्यासों को,

यद्यपि था गगरी में पानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

 

पड़ा रहा गागर में लेकिन,

काम किसी के कभी न आया ।
देखे लोग तड़पते लेकिन,

एक बूंद जल नहीं पिलाया ।।
ढक्कन खोल न पाया अपना,

चली खूब मन की मनमानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

 

यद्यपि इच्छा मेरी भी थी,

गागर से सागर बन जाऊं ।
अपना पूर्ण समर्पण करके,

मैं सागर को गले लगाऊं।।
लेकिन मिलने के क्षण मन ने,

दुहराई अस्तित्व कहानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

 

बूंद बूंद नित घटा,घट गया,

व्यर्थ हो गया संग्रह सारा ।
रिस रिस सूख गया सारा जल,

ना फूटी करुणा की धारा ।।
अब रीती गागर लेकर मैं,

डाल रहा हूं आज रवानी ।

मैं अपनी गागर का पानी ।।

Anang- Pal- Singh- Anang- ki- kavita

अनंग पाल सिंह ‘अनंग’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
९४२५७०१४१०

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  1.  उपन्यास के दुखद पृष्ठो में 
  2. हौसला

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