upanyaas ke dukhad prshthon mein/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
upanyaas ke dukhad prshthon mein : डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना जो वर्तमान किसान आंदोलन से सबंधित है कि उनकी कविता की’कुछ पंक्तियों के अंश से “आज का किसान रिहा हो गया है प्रेमचंद के गोदान से नहीं पुनः कैद होना चाहता है” , सम्पूर्णान्द मिश्र जी की रचनाएं समसमायिक, वर्तमान समाज की परिस्थिति से प्रेरित होती है । हमे आशा है आपको इस कविता को पढ़ने के बाद वर्तमान स्थिति का लेखक की नजर से पता चलेगा । प्रस्तुत है रचना –
उपन्यास के दु:खद पृष्ठों में
आज का किसान
रिहा हो गया है
प्रेमचंद के गोदान से
नहीं पुनः कैद होना चाहता है
कहानी और उपन्यास
के दुख़द पृष्ठों में
होरी और घीसू को
अरसे से बरगलाया गया
कफ़न के नाम पर अनवरत
गालियां दी गयीं
पसीना बहाकर भी
वह सतत सहलाता ही रहा पेट को।
निरंतर मृत्यु की भट्टी में
असह्य प्रसव वेदना से छटपटाती
बुधिया के जीवन की कुर्बानी से
वर्षों तलवे सहलाता आया
किसान अब अनभिज्ञ नहीं है
पूंजीवाद की भाषा
खूब समझता है अब वह
इसलिए सड़क पर
डटकर खड़ा है
पक्ष और विपक्ष को खूब अब तड़ा है
वह जानता है
इस बात को मानता है कि
सब एक ही हैं
स्वार्थ की रोटियां दोनों सेंक रहे हैं
सियासी आग की भट्ठी में
मुझ होरी और घीसू को
एक बार फिर झोंक रहे हैं
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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