अपने हिस्से का आकाश |सम्पूर्णानंद मिश्र
अपने हिस्से का आकाश
ढोता हूं पूरी शिद्दत से
अपने हिस्से का आकाश
ताकि
झरबेरी का पेड़
उग सके मेरे आंगन में
और
जिसका फल
दे सके थोड़ी सी मुस्कान
मेरे ओठों पर
ताकि अब मुझे गिरवी न रखना पड़े
सेठ साहूकारों के यहां
पूर्वजों के उन स्वप्नों को
जिनको छुड़ाने के लिए
मेरी कई पीढ़ियों
को पीना पड़ा अपना ही ख़ून
और चबाना पड़ा
अपने ही दांतों को
कच्चे चनों की तरह
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874