धूमिल याद आ गए |सम्पूर्णानंद मिश्र
धूमिल याद आ गए! मेरे समीपस्थ गांव के
मेरे प्रिय कवि धूमिल याद
आ गए आज याद आना लाजिमी था
क्योंकि पूरे देश ने उठाया था
एक तारीख़ को
एक घंटे श्रमदान करने की ज़िम्मेदारी
हिस्सा था मैं भी
उस स्वच्छता- अभियान का
एक सफाई- स्थल
के पास खड़े होकर
मेरे एक मित्र ने
फोटोग्राफर से कहा
कि मेरी तस्वीर आ गई!
उसने कहा अभी नहीं !
आप दूसरी जगह
सफ़ाई कीजिए
मैं ले लूंगा
फोटो आपकी
कई तस्वीरें हो चुकी हैं
इस स्थल की
सुनते ही इतना
लाल- पीला होने लगे
उससे आधे घण्टे तक
बेवजह उलझते रहे
वास्तव में
सफाई करते हुए
अपनी खींची हुई एक
तस्वीर की क़ीमत
जानते थे वे अच्छी तरह
दे रखी थी सुपारी
स्वच्छता -अभियान के
ब्रांड एंबेसडर की
इस बार उन्होंने
रह गए मन मसोस कर
नहीं मिल सकी
उनकी एक भी तस्वीर
स्वच्छता -अभियान की
एक साल तक
फिर रुकना होगा
अच्छी फोटो के लिए
ताकि पूरी हो सके
उनकी यह मनोकांक्षा
दरअसल
इस बार
तस्वीरें ज़्यादा आ गईं
सफ़ाई के अनुपात में
तब मुझे
प्रिय कवि धूमिल
याद आ गए!
दरवाज़े के बाहर
एक पेड़ लगा दिया
जगह-जगह तख्तियां लटका दीं
और कह दिया हो गया
वन महोत्सव!
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874