अर्चना | सम्पूर्णानंद मिश्र
अर्चना | सम्पूर्णानंद मिश्र
अर्चना
की
अभिव्यक्ति
गूंगे के मीठे फल जैसा है
जिसका
रसास्वादन सिर्फ़ किया जा सकता है
वर्णन नहीं
जीवन में
उनकी
अर्चना होनी चाहिए अवश्य
जो
त्याग के धागे
और समर्पण की सूई
से संबंधों के फटे रजिस्टर
की सिलाई कर दें
उनकी
बिल्कुल नहीं
जो
संबंधों के पत्तल में
ईर्ष्या की सूई से छेद करते हों
ऐसे लोग
अर्चित नहीं हो सकते
अर्चित तो वे हैं
जो
सामाजिक खेतों में
नफ़रत और बंटवारे की जगह
सद्भावों का बीज बोते हों
अर्चना
हमें
करनी चाहिए अवश्य उनकी भी
जिनकी उपयोगिता
शिद्दत से
महसूस कर सके
समाज का वह व्यक्ति
जिसको मुख्य धारा
से हाशिए पर
धकेल दिया गया हो
और जिसकी
ज़ुबान के ताले की चाबी
किसी पूंजीपति की
आलमारी में रख दी गई हो
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874